Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२९४]
[प्रज्ञापनासूत्र
गोयमा ! जहाओहियाणं तिरिक्खिजोणियाणं (सु. ११७२ )।णवरं काउलेस्सा असंग्वेजगुणा।
[११८०-१ प्र.] भगवन् ! इन कृणलेश्या वालों से लेकर यावत् शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत तुल्य, और विशेषाधिक हैं ?
[११८०-१ उ.] गौतम ! जैसे (सू. ११७२ में कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) औधिक (समुच्चय) तिर्यञ्चों का अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए । विशेषता यह है कि कापोतलेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्च असंख्यातगुणे हैं ।
[२] सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा तेउक्काइयाणं । (सु. ११७६) ।
[११८०-२] (कृष्णादिलेश्यायुक्त) सम्मूछिम-पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का अल्पबहुत्व (सू. ११७६ में उक्त) तेजस्कायिकों के (अल्पबहुत्व के) समान (समझना चाहिए) ।
[३] गब्भवक्वंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणां जहा ओहियाणं तिरिक्खजोणियाणं (सु. ११७२) ।णवरं काउलेस्सा संखेजगुणा ।
[११८०-३] (कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का अल्पबहुत्व समुच्चय पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के (सू. ११७२ में उक्त) अल्पबहुत्व के समान जान लेना चाहिए । विशेषता यह है कि कापोतलेश्या वाले (गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) संख्यातगुणे (कहने चाहिए) ।
[४] एवं तिरिक्खजोणिणीणय वि। - [११८०-४] (जैसे गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का अल्पबहुत्व कहा है,) इसी प्रकार गर्भजपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों का भी (अल्पबहुत्व कहना चाहिए)।
। [५] एतेसिणं भंते ! सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गब्भवक्त्रंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्या वा ४ ? ... गोयमा! सव्वत्थोवा गब्भवकंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेजगुणा, तेउलेस्सा संखेजगुणा, काउलेस्सा संखेजगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्सा सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया असंखेजगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया ।
[११८०-५ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वालों से लेकर शुक्ललेश्यायुक्त सम्मूछिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों और गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? . [११८०-५ उ.] गौतम ! सबसे कम शुक्ल लेश्या वाले गर्भज-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक हैं, उनसे पद्मलेश्यावाले संख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्याविशिष्ट संख्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्याविशिष्ट (गर्भज