Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक ]
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[११८०-९ उ.] गौतम ! सबसे कम शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक हैं, उनसे शुक्ललेश्या वाली पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां संख्यातगुणी हैं, उनसे पद्मलेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) संख्यातगुणे हैं, उनसे पद्मलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) संख्यातगुणी हैं, उनसे तेजोलेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च ) संख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) संख्यातगुणी हैं, उनसे कापोतलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) संख्यातगुणी हैं, उनसे नीललेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) विशेषाधिक हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च ) असंख्यात गुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) विशेषाधिक हैं ।
[१०] एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीय य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ?
गोयमा ! जहेव णवमं अप्पाबहुगं तहा इमं पि, नवरं काउलेस्सा तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा । एवं एते दस अप्पाबहुगा तिरिक्खजोणियाणं ।
[११८०-१० प्र.] भगवन् ! इन तिर्यञ्चयोनिकों और तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों में से कृष्णलेश्या से लेकर शुक्लेश्या वालों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[११८०-१० उ. ] गौतम ! जैसे नौवाँ कृष्णादिलेश्या वाले तिर्यञ्चयोनिकसम्बन्धी अल्पबहुत्व कहा है, वैसे यह दसवाँ भी समझ लेना चाहिए । विशेषता यह है कि कापोतलेश्या वाले तिर्यञ्चयोनिक अनन्तगुणे होते हैं, कहना चाहिए ।
इस प्रकार ये (पूर्वोक्त) दस अल्पबहुत्व तिर्यञ्चों के कहे गए हैं ।
११८१. एवं मणूसाणं पि अप्पाबहुगा भाणियव्वा । णवरं पच्छिमगं अप्पाबहुगं णत्थि । [११८१] इसी प्रकार (कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) मनुष्यों का भी अल्पबहुत्व कहना चाहिए । परन्तु उनका अंतिम अल्पबहुत्व नहीं है ।
११८२. [ १ ] एतेसि णं भंते ! देवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा देवा सुक्कलेसा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुण, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा ।
[११८२-१ प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले से लेकर शुक्ललेश्या वाले देवों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[११८२-१ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े शुक्ललेश्या वाले देव हैं, उनसे पद्मलेश्या वाले देव असंख्यातगुणे