Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३०२]
[प्रज्ञापनासूत्र
जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४ ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा वेमाणिया देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेजगुणा, तेउलेस्सा असंखेजगुणा, तेउलेस्साओ वेमाणिणीओ देवीओ संखेजगुणाओ, तेउलेस्सा भवणवासी देवा असंखेजगुणा, तेउलेस्साओ भवणवासिणीओ देवीओ संखेजगुणाओ, काउलेस्सा भवणवासी असंखेजगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ भवणवासिणीओ संखेजगुणाओ, णीललेसाओ विसेसाहियाओ, कण्हलेसाओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्सा वाणमंतरा असंखेजगुणा, तेउलेस्साओ वाणमंतरीओ संखेजगुणाओ, काउलेस्सा वाणमंतरा असंखेजगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ वाणमंतरीओ संखेजगुणाओ, णीललेस्साओ विसेसाहियाओ, कण्हलेस्साओ विसेसाहियाओ, तेउलेस्सा जोइसिया संखेजगुणा, तेउलेस्साओ जोइसिणीओ संखेजगुणाओ।।
[११९० प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले से लेकर शुक्ललेश्या वाले तक के भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? _ . [११९० उ.] गौतम ! सबसे थोड़े शुक्ललेश्या वाले वैमानिक देव हैं, उनसे पद्मलेश्या वाले (वैमानिक देव) असंख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाले (वैमानिक देव) असंख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाली वैमानिक देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे तेजोलेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाली भवनवासी देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले (भवनवासी देव) विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाले (भवनवासी देव) विशेषाधिक हैं, उनसे कापोतलेश्या वाली (भवनवासी देवियाँ) संख्यातगुणी हैं, उनसे नीललेश्या वाली (भवनवासी देवियाँ) विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाली (भवनवासी देवियाँ) विशेषाधिक हैं, उनसे तेजोलेश्या वाले वाणव्यन्तर देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले वाणव्यन्तर देव असंख्यातगुणे हैं, उनसे नीललेश्या वाले (वाणव्यन्तर देव) विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाले (वाणव्यन्तर देव) विशेषाधिक हैं, उनसे कापोतलेश्या वाली (वाणव्यन्तर देवियाँ) संख्यातगुणी हैं, उनसे नीललेश्या वाली (वाणव्यन्तर देवियाँ) विशेषाधिक हैं, उनसे कृष्णलेश्या वाली (वाणव्यन्तर देवियाँ) विशेषाधिक हैं; उनसे तेजोलेश्या वाले ज्योतिष्क देव संख्यातगुणे हैं, उनसे तेजोलेश्या वाली ज्योतिष्क देवियाँ संख्यातगुणी हैं ।
विवेचन - विविध लेश्याविशिष्ट चौवीस दण्डकवर्ती जीवों का अल्पबहुत्व - प्रस्तुत बीस सूत्रों (सू. ११७१ से ११९० तक) में कृष्णादिलेश्याविशिष्ट चौवीस दण्डकों के विभिन्न लिंगादियुक्त जीवों के विविध अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है । ..
कृष्ण-नील-कापोतलेश्यायुक्त नारकों का अल्पबहुत्व - नारकों में केवल तीन ही लेश्याएँ पाई जाती हैं - कृष्ण, नील और कापोत । जैसा कि कहा है - प्रारम्भ की दो नरकपृथ्वियों में कापोत, तीसरी