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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : प्रथम उद्देशक] [२७३ आहारादि-प्ररूपणा) के समान (जानना चाहिए) । ११३२. असुरकुमारा णं भंते ! सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! णो इणढे समढे । से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ ? गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पुव्वोवण्णगा य पच्छोववण्णगा य।तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं महाकम्मतरागा । तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं अप्पकम्मतरागा, से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ असुरकुमारा णो सव्वे समकम्मा । [११३२ प्र.] भगवन् ! सभी असुरकुमार समान कर्म वाले हैं ? [११३२ उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से कहते हैं कि सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं हैं ? [उ.] गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार - पूर्वोपपन्नक और पश्चादुपपन्नक। उनमें जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे महाकर्म वाले हैं। उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे अल्पतरकर्म वाले हैं । इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी असुरकुमार समान कर्म वाले नहीं हैं। ११३३.[१] एवं वण्ण-लेस्साए पुच्छा। तत्थ णं जे ते पुव्वोववण्णगा ते णं अविसुद्धवण्णतरागा । तत्थ णं जे ते पच्छोववण्णगा ते णं विसुद्धवण्णतरागा, से एएणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति असुरकुमारा सव्वे णो समवण्णा । __ [११३३-१ प्र.] इसी प्रकार वर्ण और लेश्या के लिए प्रश्न कहना चाहिए। (भगवन् ! असुरकुमार क्या सभी समान वर्ण और समान लेश्या वाले हैं ?) [११३-१ उ.] गौतम ! (पूर्वोक्त) दो प्रकार के असुरकुमारों में जो पूर्वोपपन्नक हैं, वे अविशुद्धतर वर्ण वाले हैं तथा उनमें जो पश्चादुपपन्नक हैं, वे विशुद्धतर वर्ण वाले हैं। इस कारण गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि सभी असुरकुमार समान वर्ण वाले नहीं होते । [२] एवं लेस्साए वि। [११३३-२] इसी प्रकार लेश्या के विषय में (कहना चाहिए ।) ११३४. वेदणाए जहा णेरइया (सु. ११२८)। [११३४] (असुरकुमारों की) वेदना के विषय में (सू. ११२८ में उक्त) नैरयिकों (की वेदनाविषयक प्ररूपणा) के समान (कहना चाहिए।)
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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