Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र
१११८. से किं तं उद्दिस्सपविभत्तगती ?
उद्दिस्सपविभत्तगती जेणं आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवत्तिं वा गणिं वा गणहरं वा गावच्छेयं वा उद्दिसिय २ गच्छति । से त्तं उद्दिस्सपविभत्तगती १३ ।
[१११८ प्र.] उद्दिश्यप्रविभक्तगति क्या स्वरूप है ?
[१११८ उ.] आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्त्तक, गणि, गणधर अथवा गणावच्छेदक को लक्ष्य (उद्देश्य) करके जो गमन किया जाता है, वह उद्दिश्यप्रविभक्तगति है ।
यह हुआ उद्दिश्यप्रविभक्तगति का स्वरूप ॥ १३ ॥
१११९. से किं तं चउपुरिसपविभक्तगती ?
चउपुरिसपविभत्तगती से जहाणामए चत्तारि पुरिसा समगं पट्ठिता समगं पज्जवट्ठिया १ समगं पट्टिया विसमं पज्जवट्ठिया २ विसमं पट्टिया समगं पज्जवट्ठिया ३ विसमं पट्ठिया विसमं पज्जवट्ठिया ४ | से त्तं चउपुरिसपविभक्तगती १४ ।
[१११९ प्र.] चतुःपुरुषप्रविभक्तगति किसे कहते हैं ?
[१११९ उ.] जैसे- १. किन्हीं चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ और एक ही साथ पहुँचे, २ . (दूसरे) चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ, किन्तु वे एक साथ नहीं (आगे-पीछे) पहुँचे, ३. (तीसरे) चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान नहीं ( आगे-पीछे) हुआ, किन्तु पहुँचे चारों एक साथ, तथा ४. (चौथे) चार पुरुषों का प्रस्थान एक साथ नहीं (आगे-पीछे) हुआ और एक साथ भी नहीं (आगे-पीछे) पहुँचे, इन चारों पुरुषों की चतुर्विकल्पात्मकगति चतुः पुरुषप्रविभक्तगति है। यह हुआ चतुःपुरुषप्रविभक्तगति का स्वरूप ॥ १४॥
११२०. से किं तं वंकगती ?
वंकगती चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा- घट्टणया १ थंभणया २ लेसणया ३ पवडणया ४ । से तं वंकगती १५ ।
[११२० प्र.] वक्रगति किस प्रकार की है ?
[११२० उ.] वक्रगति चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार - (१) घट्टन से, (२) स्तम्भन से, (३) श्लेषण से और (४) प्रपतन से ।
यह हुआ वक्रगति (का स्वरूप) ॥ १५ ॥
से किं तं पंकगती ?
११२१.
पंगती से जहाणामए केइ पुरिसे सेयंति वा पंकंसि वा उदयंसि वा कार्य उव्वहिया २ गच्छति । से त्तं पंकगती १६ ।