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________________ २६०] [ प्रज्ञापनासूत्र १११८. से किं तं उद्दिस्सपविभत्तगती ? उद्दिस्सपविभत्तगती जेणं आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवत्तिं वा गणिं वा गणहरं वा गावच्छेयं वा उद्दिसिय २ गच्छति । से त्तं उद्दिस्सपविभत्तगती १३ । [१११८ प्र.] उद्दिश्यप्रविभक्तगति क्या स्वरूप है ? [१११८ उ.] आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्त्तक, गणि, गणधर अथवा गणावच्छेदक को लक्ष्य (उद्देश्य) करके जो गमन किया जाता है, वह उद्दिश्यप्रविभक्तगति है । यह हुआ उद्दिश्यप्रविभक्तगति का स्वरूप ॥ १३ ॥ १११९. से किं तं चउपुरिसपविभक्तगती ? चउपुरिसपविभत्तगती से जहाणामए चत्तारि पुरिसा समगं पट्ठिता समगं पज्जवट्ठिया १ समगं पट्टिया विसमं पज्जवट्ठिया २ विसमं पट्टिया समगं पज्जवट्ठिया ३ विसमं पट्ठिया विसमं पज्जवट्ठिया ४ | से त्तं चउपुरिसपविभक्तगती १४ । [१११९ प्र.] चतुःपुरुषप्रविभक्तगति किसे कहते हैं ? [१११९ उ.] जैसे- १. किन्हीं चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ और एक ही साथ पहुँचे, २ . (दूसरे) चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ, किन्तु वे एक साथ नहीं (आगे-पीछे) पहुँचे, ३. (तीसरे) चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान नहीं ( आगे-पीछे) हुआ, किन्तु पहुँचे चारों एक साथ, तथा ४. (चौथे) चार पुरुषों का प्रस्थान एक साथ नहीं (आगे-पीछे) हुआ और एक साथ भी नहीं (आगे-पीछे) पहुँचे, इन चारों पुरुषों की चतुर्विकल्पात्मकगति चतुः पुरुषप्रविभक्तगति है। यह हुआ चतुःपुरुषप्रविभक्तगति का स्वरूप ॥ १४॥ ११२०. से किं तं वंकगती ? वंकगती चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा- घट्टणया १ थंभणया २ लेसणया ३ पवडणया ४ । से तं वंकगती १५ । [११२० प्र.] वक्रगति किस प्रकार की है ? [११२० उ.] वक्रगति चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार - (१) घट्टन से, (२) स्तम्भन से, (३) श्लेषण से और (४) प्रपतन से । यह हुआ वक्रगति (का स्वरूप) ॥ १५ ॥ से किं तं पंकगती ? ११२१. पंगती से जहाणामए केइ पुरिसे सेयंति वा पंकंसि वा उदयंसि वा कार्य उव्वहिया २ गच्छति । से त्तं पंकगती १६ ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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