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________________ सोलहवाँ प्रयोगपद] [२६१ [११२१ प्र.] पंकगति का क्या स्वरूप है ? [११२१ उ.] जैसे कोई पुरूष कादे में, कीचड़ में अथवा जल में (अपने) शरीर को दूसरे के साथ जोड़कर गमन करता है, (उसकी) यह (गति) पंकजगति है। ११२२. से किं तं बंधणविमोयणगती ?' बंधणविमोयणगती जण्णं अंबाण वा अंबाडगाण वा माउलुंगाण वा बिल्लाण वा कविट्टाण वा भल्लाण वा फणसाण वा दाडिमाण वा पारेवताण वा अक्खोडाण वा चोराण वा बोराण वा तिंदुयाण वा पक्काणं परियागयाणं बंधणाओ विप्पमुक्काणं णिव्वाघाएणं अहे वीससाए गती पवत्तइ । से त्तं बंधणविमोयणगती १७ ।[से त्तं विहायगती । से त्तं गइप्पवाए ।] ॥पण्णवणाए भगवतीए सोलसमं पओगपयं समत्तं ॥ [११२२ प्र.] वह बन्धनविमोचनगति क्या है ? । [११२२ उ.] अत्यन्त पक कर तैयार हुए, अतएव बन्धन से विमुक्त (छूटे हुए) आम्रों, आम्रातकों, बिजौरों, बिल्वफलों (बेल के फलों) कवीठों, भद्र नामक फलों, कटहलों (पनसों), दाडिमों, पारेवत नामक फलविशेषों, अखरोटों, चोर फलों (चारों), बोरों अथवा तिन्दुकफलों की रुकाटव (व्याघात) न हो तो स्वभाव से ही जो अधोगति होती है, वह बन्धनविमोचनगति है। यह हुआ बन्धनविमोचनगति का स्वरूप ॥ १७॥ इसके साथ ही विहायोगति की प्ररूपणा पूर्ण हुई । यह हुआ गतिप्रपात का वर्णन । विवेचन - गतिप्रपात के भेद-प्रभेद एवं उनके स्वरूप का निरूपण- प्रस्तुत ३७ सूत्रों (सू. १०८६ से ११२२ तक ) में प्रयोगगति आदि पांचों प्रकार के गतिप्रपातों के स्वरूप एवं प्रकारों की प्ररूपणा की गई है। विहायोगति की व्याख्या - आकाश में होने वाली गति को विहायोगति कहते हैं। वह १७ प्रकार की है।(१)स्पृशद्गति- परमाणु आदि अन्य वस्तुओं के साथ स्पृष्ट हो-होकर अर्थात्- परस्पर सम्बन्ध को प्राप्त हो करके जो गमन करते हैं, वह स्पृशद्गति कहलाती है। (२) अस्पृशद्गति- परमाणु आदि अन्य परमाणु आदि से अस्पष्ट रहकर यानि परस्पर सम्बन्ध का अनुभव न करके जो गमन करते हैं, वह अस्पृशद्गति है। जैसे- परमाणु एक ही समय में एक लोकान्त से अपर लोकान्त तक पहुँच जाता है।(३) उपसम्पद्यमानगतिकिसी दूसरे का आश्रय लेकर (यानी दूसरे के सहारे से) गमन करना । जैसे- धन्ना सार्थवाह के आश्रय से धर्मघोष आचार्य का गमन ।(४) अनुपसम्पद्यमानगति-बिना किसी का आश्रय लिये मार्ग में गमन करना। १. ग्रन्थाग्रम् ५०००
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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