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________________ सोलहवाँ प्रयोगपद] लिए) जो गमन होता है, वह छायागति है । यह है छायागति का वर्णन ॥ ९॥ १११५. से किं तं छायाणुवातगती ? छायाणुवातगती जण्णं पुरिसं छाया अणुगच्छति णो पुरिसे छायं अणुगच्छति । से त्तं छायाणु वातगती १० । [२५९ [१११५ प्र.] छायानुपातगति किसे कहते हैं ? [१११५ उ.] छायाः पुरुष आदि अपने निमित्त का अनुगमन करती है, किन्तु पुरुष छाया का अनुगमन नहीं करता, वह छायानुपातगति है। यह हुआ छायानुपातगति ( का स्वरूप । ) ॥ १० ॥ १११६. से किं तं लेस्सागती ? लेस्सांगती जपणं कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमति, एवं णीललेस्सा काउलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव ताफासत्ताए परिणमति, एवं काउलेस्सा वि तेउलेस्सं, तेउलेस्सा वि पम्हलेस्सं, पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सं पप्प तारूवताए जाव परिणमति । से त्तं लेस्सागती ११ । [१११६ प्र.] लेश्यागति का क्या स्वरूप है ? [१११६ उ.] कृष्णलेश्या (के द्रव्य) को प्राप्त होकर उसी के वर्णरूप में उसी के गन्धरूप में, उसी के रसरूप में तथा उसी के स्पर्शरूप में बार-बार जो परिणत होती है, इसी प्रकार नीललेश्या भी कापोतलेश्या को प्राप्त होकर उसी के वर्णरूप में यावत् उसी के स्पर्शरूप में परिणत होती है, इसी प्रकार कापोतलेश्या भी तेजोलेश्या को, तेजोलेश्या पद्मलेश्या को तथा पद्मलेश्या शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर जो उसी के वर्णरूप में यावत् उसी के स्पर्शरूप में परिणत होती है, वह लेश्यागति है । यह है लेश्यागति का स्वरूप ॥ ११ ॥ १११७. से किं तं लेस्साणुवायगती ? लेस्साणुवायगती जल्लेस्साई दव्वाइं परियाइत्ता कालं करेति तल्लेस्सेसु उववज्जति । तं जहाकण्हलेस्सेसु वा जाव सुक्कलेस्सेसु वा । से त्तं लेस्साणुवायगती १२ । [१११७ प्र.] लेश्यानुपातगति किसे कहते हैं ? [१११७ उ.] जिस लेश्या के द्रव्यों को ग्रहण करके (जीव) काल करता (मरता) है, उसी लेश्या वाले (जीवों) में उत्पन्न होता है। जैसे- कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले द्रव्यों में । (इस प्रकार की गति ) श्यानुपातगति है । यह हुआ लेश्यानुपातगति का निरूपण ॥१२॥
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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