Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२५८]
[प्रज्ञापनासूत्र
यह हुआ पुद्गलगति का स्वरूप ॥५॥ ११११. से किं तं मंडूयगती ? मंडूयगती जण्णं मंडूए उप्फिडिया उप्फिडिया गच्छति । सेत्तं मंडूयगती ६ । [११११ प्र.] मण्डूकगति का क्या स्वरूप है ? [११११ उ.] मेंढ़क जो उछल-उछल कर गति करता है, वह मण्डूकगति कहलाती है। यह हुआ मण्डूकगति का (स्वरूप ।) ॥६॥ १११२. से किं तं णावागती ?
णावागती जण्णं णावा पुव्ववेयालीओ दाहिणवेयालिं जलपहेणं गच्छति, दाहिणवेयालीओ वा अवरवेयालिं जलपहेणं गच्छति । सेत्तं णावागती ७ ।
[१११२ प्र.] वह नौकागति क्या है ?
[१११२ उ.] जैसे नौका पूर्व वैताली (तट) से दक्षिण वैताली की ओर जलमार्ग से जाती है, अथवा दक्षिण वैताली से अपर वैताली की ओर जलपथ से जाती है, ऐसी गति नौकागति है। यह हुआ नौकागति का स्वरूप ॥७॥ . १११३. से किं तं णयगती?
णयगती जण्णं णेगम-संगह-ववहार-उज्जुसुय-सह-समभिरूढ-एवंभूयाणं णयाणं जा गती अहवा सव्वणया वि जं इच्छंति। से त्तं णयगती ८ ।
[१११३ प्र.] नयगति का क्या स्वरूप है ?
[१११३ उ.] नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूत, इन सात नयों की जो प्रवृत्ति है, अथवा सभी नय जो मानते (चाहते या विवक्षा करते) हैं, वह नयगति है। यह हुआ नयगति का
स्वरूप ॥८॥
१११४. से किं तं छायागती?
छायागती जण्णं हयच्छायं वा गयच्छायं वा नरच्छायं वा किन्नरच्छायं वा महोरगच्छायं वा गंधव्वच्छायं वा उसहच्छायं वा रहच्छायं वा छत्तच्छायंवा उवसंपजित्ताणं गच्छति ।सेत्तं छायागती९।
[१११४ प्र.] छायागति किसे कहते हैं ?
[१११४ उ.] अश्व की छाया, मनुष्य की छाया, किन्नर की छाया, महोरग की छाया, गन्धर्व की छाया, वृषछाया, रथछाया, छत्रछाया का आश्रय करके (छाया का अनुसरण करके या छाया का आश्रय लेने के