Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सोलहवाँ प्रयोगपद]
[२३७
वि, अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगमीससरीरकायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगमीससरीरकायप्पओगिणो य ४ चउभंगो, अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगी य आहारगमीसासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य आहारगसरीर कायप्पओगी य आहार गमीससरीर कायप्पओगिणो य २ अहवेगे य आहारगसरीर कायप्पओगिणो य आहार गमीसासरीर कायप्पओगी य ३ अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पओगिणो य आहारगमीसासरीरकायप्पओगिणो य ४, एए जीवाणं अट्ठ भंगा ।
[१०७७ प्र.] भगवन् ! जीव सत्यमन: प्रयोगी होते हैं अथवा यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं ?
[१०७७ उ.] गौतम ! (१) जीव सभी सत्यमन: प्रयोगी भी होते हैं, यावत् मृषामनः प्रयोगी, सत्यमृषामनःप्रयोगी, असत्यामृषामनःप्रयोगी आदि तथा वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी एवं कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी, (इस प्रकार तेरह पदों के वाच्य) होते हैं, (१) अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी होता है, (२) अथवा बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी होते हैं, (३) अथवा एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी होता है, (४) अथवा बहुत-से जीव आहारकमि श्रशरीरकायप्रयोगी होते हैं। ये चार भंग हुए। तेरह पदों वाले प्रथम भंग की इनके साथ गणना की जाए तो पांच भंग हो जाते हैं । (द्विकसंयोगी चार भंग ) - १. अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकाय प्रयोगी, २. अथवा एक आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत-से आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, ३. अथवा बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी और एक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी, ४. अथवा बहुत-से आहारकशरीरकायप्रयोगी और बहुत-से आहारकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी। ये समुच्चय जीवों के प्रयोग की अपेक्षा से आठ भंग हुए। (इनमें प्रथम भंग को मिलाने से नौ भंग होते हैं ।)
विवेचन- समुच्चय जीवों में विभाग से प्रयोगप्ररूपणा - प्रस्तुत सूत्र (१०७७) में समुच्चय जीवों में प्रयोग की अपेक्षा से पाए जाने वाले आठ भंगों का निरूपण किया गया हैं।
समुच्चय जीवों में तेरह पदों का एक भंग- समुच्चय जीवों में आहारक और आहारकमिश्र को छोड़ कर शेष १३ पदों का एक भंग होता है। तात्पर्य यह है कि सदैव बहुत-से जीव सत्यमनप्रयोगी भी पाए जाते हैं, असत्यमनःप्रयोगी भी, यावत् वैक्रियशरीरकायप्रयोगी भी पाए जाते हैं, तथैव कार्मणशरीरकायप्रयोगी भी पाए जाते हैं। नारक जीव सदैव उपपात के पश्चात् उत्तरवैक्रिय आरम्भ कर देते हैं, इसलिए सदैव वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी होते हैं । वनस्पति आदि के जीव सदैव विग्रह के कारण अन्तरालगति में पाए जाते हैं, इसलिए वे सदैव कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं, किन्तु आहारकशरीरी कदाचित् सर्वथा नहीं पाए जाते; क्योंकि उनका अन्तर उत्कृष्टतः छह मास तक का सम्भव है । अर्थात् छह महीनों तक एक भी आहारकशरीरी न पाया जाए, यह भी सम्भव है। जब वे पाए भी जाते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन, तथा उत्कृष्टत: सहस्नप्रथक्त्व (दो हजार से नौ हजार) तक होते हैं । इस प्रकार जब आहारकशरीरकायप्रयोगी और आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी एक भी नहीं पाया जाता, तब बहुत जीवों की अपेक्षा से बहुवचनविशिष्ट १३