Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र
१५. अथवा अनेक औदारिकमिश्रशरीरकाय प्रयोगी, अनेक आहारकशरीरकाय- प्रयोगी, अनेक आहारकमिश्रशरीरकाय- प्रयोगी और एक कार्मणशरीरकाय- प्रयोगी होता है; १६ अथवा अनेक औदारिकमिश्रशरीरकाय- प्रयोगी, अनेक आहारकशरीरकाय- प्रयोगी, अनेक आहारकमिश्रशरीरकाय - प्रयोगी . और अनेक कार्मणशरीरकाय - प्रयोगी होते हैं । इस प्रकार चतु:संयोगी ये सोलह भंग होते हैं तथा ये सभी (असंयोगी ८, द्विकसंयोगी २४, त्रिकसंयोगी ३२ और चतु:संयोगी १६ मिलकर अस्सी भंग होते हैं ॥ ८० ॥
विवेचन - मनुष्यों में विभाग से प्रयोग-प्ररूपणा - प्रसतुत सूत्र (१०८३) में असंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी और चतु:संयोगी ८० भंगो के द्वारा मनुष्यों में पाए जाने वाले प्रयोगों की प्ररूपणा की गई है।
मनुष्यों में सदैव पाए जाने वाले ग्यारह पद - मनुष्यों में १५ प्रकार के प्रयोगों में ११ पद (प्रयोग) तो सदैव बहुवचन से पाए जाते हैं, यथा- चारों प्रकार के मनः प्रयोगी, चारों प्रकार के वचन-प्रयोगी तथा औदारिकशरीरकाय-प्रयोगी और वैक्रियद्विकप्रयोगी (वैक्रियशरीरकायप्रयोगी और वैक्रियमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी ) । मनुष्यों में वैक्रियमिश्रशरीरकाय- प्रयोगी विद्याधरों की अपेक्षा से समझना चाहिए; क्योंकि विद्याधर तथा अन्य कतिपय मिथ्यादृष्टि आदि वैक्रियलब्धिसम्पन्न अन्यान्यभाव से सदैव विकुर्वणा करते पाए जाते हैं। मनुष्यों में औदारिकमिश्रशरीरकाय- प्रयोगी और कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी कभी-कभी सर्वथा नहीं भी पाए जाते, क्योंकि ये नवीन उपपात के समय पाए जाते हैं और मनुष्यों के उपपात का विरहकाल बारह मुहूर्त का कहा गया है। आहारकशरीरकाय-प्रयोगी और आहारकमिश्रशरीरकाय- प्रयोगी भी कभी-कभी होते हैं, यह पहले भी कहा जा चुका है। अत: औदारिकमिश्र आदि चारों प्रयोगों का अभाव होने से उपर्युक्त बहुवचन विशिष्ट ग्यारह पदों वाला यह प्रथम भंग है।
एकसंयोगी आठ भंग - औदारिकमि श्रशरीरकाय- प्रयोगी एकत्व - बहुत्वविशिष्ट दो भंग, इसी प्रकार आहारकशरीरकाय-प्रयोगी दो भंग, आहारकमिश्रशरीरकाय- प्रयोगी दो भंग, कार्मणशरीरकाय-प्रयोगी दो भंग इस प्रकार एक-एक का संयोग करने पर आठ भंग होते हैं।
द्विकसंयोगी चौवीस भंग - औदारिकमिश्र एवं आहारकपद को लेकर एकवचन बहुवचन से चार, औदारिकमिश्र तथा आहारकमिश्र इन दोनों पदों को लेकर चार, औदारिकमिश्र एवं कार्मण पद को लेकर चार, आहारक और आहारकमिश्र को लेकर चार, आहारक और कार्मण को लेकर चार, तथा आहारकमिश्र और कार्मण को लेकर चार, ये सब मिलाकर द्विकसंयोगी कुल २४ भंग होते हैं ।
त्रिसंयोगी बत्तीस भंग - औदारिकमिश्र, आहारक और आहारकमिश्र, इन तीन पदों के एकवचन और बहुवचन को लेकर ८ भंग, औदारिकमिश्र, आहारक और कार्मण इन तीनों के ८ भंग, औदारिकमिश्र, आहारकमिश्र और कार्मण, इन तीन पदों के आठ भंग और आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण, इन तीनों पदों के आठ, ये सब मिलकर त्रिकसंयोगी कुल ३२ भंग होते हैं ।
चतु:संयोगी सोलह भंग- औदारिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण, इन चारों पदों के एकवचन और बहुवचन को लेकर सोलह भंग होते हैं। इस प्रकार असंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी और