Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ग्यारहवाँ भाषापद]
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[१७] जाइं भंते ! ओगाढाइं गेण्हति ताई किं अणंतरोगाढाइं गेण्हति, परंपरोगाढाइं गेण्हति ? गोयमा ! अणंतरोगाढाइं गेण्हति, णो परंपरोगाढाइं गेण्हति।
[८७७-१७ प्र.] भगवन् ! (जीव) जिन अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) उन अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा परम्परावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-१७ उ.] गौतम ! (वह) अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, किन्तु परम्परावगाढ द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता ।
[१८] जाइं भंते ! अणंतरोगाढाइं गेण्हति ताई किं अणूइं गेण्हति ? बादराई गेण्हति ? गोयमा ! अणूई पि गेण्हइ बादराई पि गेण्हति । .
[८७७-१८ प्र.] भगवन् ! (जीव) जिन अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) अणुरूप द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा बादर द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
__[८७७-१८ उ.] गौतम ! (वह) अणुरूप द्रव्यों को भी ग्रहण करता है और बादर द्रव्यों को भी ग्रहण करता है।
__ [१९] जाइं भंते ! अणूइं पि गेण्हति बायराइं पि गेण्हति ताई किं उड्ढं गेण्हति ? अहे गेण्हति ? तिरियं गेण्हति ?
गोयमा ! उड्ढं पि गिण्हति, अहे पि गिण्हति, तिरियं पि गेण्हति
[८७७-१९ प्र.] भगवन् जिन अणुद्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या उन्हें (वह) ऊर्ध्व (दिशा में) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अधः (नीचे) दिशा अथवा तिर्यक् दिशा में स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता
[८७७-१९ उ.] गौतम ! (वह) अणुद्रव्यों को ऊर्ध्व दिशा में, अधः (नीचे) दिशा में और तिरछी दिशा में स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है।
[२०] जाइं भंते ! उड्ढं पि गेण्हति अहे पि गेण्हति तिरियं पि गेण्हति ताई किं आई गेण्हति ? मज्झे गेण्हति ? पज्जवसाणे गेण्हति ?
गोयमा ! आई पि गेण्हति, मझे वि गेण्हति, पजवसाणे वि गेण्हति । .
[८७७-२० प्र.] भगवन् ! (जीव) जिन (अणुद्रव्यों) को ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक् दिशा में स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आदि (प्रारम्भ) में ग्रहण करता है, मध्य में ग्रहण करता है, अथवा अन्त में ग्रहण करता है ?