Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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११२ ]
[ प्रज्ञापनासूत्र
प्रमाणमात्र श्रेणियों जितनी है तथा जो (नैरयिकों के) मुक्त वैक्रियशरीर हैं, उनके परिमाण के विषय में (नारकों कें) मुक्त औदारिक शरीर के समान (९११ -१ के अनुसार) कहना चाहिए।
[ ३ ] णेरइयाणं भंते! केवतिया आहारगसरीरा पण्णत्ता ?
गोमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा- बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । एवं जहा ओरालिया बद्धेल्लगा मुलगा य भणिया (सु. ९११ - [ १ ] ) तहेव आहारगा वि भाणियव्वा ।
[९११-३प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के आहारकशरीर कितने कहे गए हैं ?
[९११-३उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - बद्ध और मुक्त। जैसे (नारकों के) औदारिक बद्ध और मुक्त (सू. ९११ - १ में) कहे गए हैं, उसी प्रकार (नैरयिकों के बद्ध और मुक्त) आहारकशरीरों के विषय में कहना चाहिए ।
[४] तेया- कम्मगाई जहा एतेसिं चेव वेडव्वियाई ।
[९११-४] (नारकों) तैजस - कार्मण शरीर इन्हीं के वैक्रियशरीरों के समान कहने चाहिए।
विवेचन - नैरयिकों के बद्ध-मुक्त पंच शरीरों की प्ररूपणा - प्रस्तुत सूत्र (सू. ९११ -१ से ४) में नैरयिकों के बद्ध और मुक्त पंच शरीरों के परिमाण के विषय में प्ररूपणा की गई है।
नैरयिकों के बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों की प्ररूपणा - नैरयिकों के बद्ध औदारिकशरीर नहीं होते, क्योंकि जन्म से ही उनमें औदारिकशरीर संभव नहीं है । उनके मुक्त औदारिकशरीरों का कथन पूर्वोक्त औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान समझना चाहिए।
नारकों के बद्ध-मुक्त वैक्रियशरीरों की प्ररूपणा - नारकों के बद्ध वैक्रियशरीर उतने ही हैं, जितने नैरयिक हैं, क्योंकि प्रत्येक नारक का एक बद्ध वैक्रियशरीर होता है । नारक जीवों की संख्या असंख्यात होने से उनके बद्ध वैक्रियशरीरों की संख्या भी असंख्यात ही है । इस असंख्यातता की काल और क्षेत्र से प्ररूपणा करते हुये शास्त्रकार कहते हैं - कालतः - उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी कालों के एक-एक समय में यदि एक-एक शरीर का अपहरण किया जाए तो असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों में उन सब शरीरों का अपहरण होता है । दूसरे शब्दों में कहें तो - असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों के जितने समय हैं, उतने ही नारकों के बद्ध वैक्रियशरीर होते हैं। क्षेत्रत:- वे असंख्यात श्रेणी -प्रमाण हैं और प्रतर का असंख्यातवाँ भाग ही श्रेणी कहलाती है । ऐसी असंख्यात श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उतने ही नारकों के बद्ध वैक्रियशरीर होते हैं।
अब प्रश्न यह है कि सकल (सम्पूर्ण) प्रतर में भी असंख्यात श्रेणियाँ होती हैं, प्रतर के अर्द्ध भाग में भी और तृतीय ( तिहाई) भाग आदि में भी असंख्यात श्रेणियाँ होती हैं, ऐसी स्थिति में यहाँ कितनी संख्या वाली