Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बारहवाँ शरीरपद ]
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आती है, यह चौथा वर्ग हुआ । इस चौर्थ वर्ग की राशि का पुन: इसी राशि के साथ गुणा करने पर ४२९४९६७२९६ संख्या आती है। यह पांचवाँ वर्ग हुआ। पंचम वर्ग की 'चार सो उनतीस करोड़, उनचास लाख, सड़सठ हजार दो सौ छयानवे' राशि का इसी राशि के साथ गुणाकार करने पर १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ राशि आई, यह छठा वर्ग हुआ । इस छठे वर्ग का पूर्वोक्त पंचमवर्ग के साथ गुणाकार करने पर जो राशि निष्पन्न होती है, जघन्यपद में उतने ही मनुष्य हैं। यह राशि पूर्वोक्त २९ (उनतीस ) अंको में इस प्रकार से है- ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ - ये उनतीस अंक कोटाकोटी आदि के द्वारा किसी भी तरह कहे नहीं जा सकते। अनुयोगद्वारतृत्ति में (विपरीत क्रम से अंकों की गणना होती है इस न्याय के अनुसार) यह संख्या दो गाथाओं द्वारा बताई है । अथवा पूर्वाचार्यों ने अंकों के प्रथम अक्षर को लेकर विपरीत क्रम से एक गाथा में यही संख्या बताई है। अब इसी संख्या को प्रकारान्तर से समझने के लिए शास्त्रकार कहते है- ‘अहव णं छण्णउईछेयणगदायी रासी' छियानवे छेदनकदायी राशि की व्याख्या इस प्रकार है- जो आधी-आधी छेदन करते-करते छियानवै वार छेदन को प्राप्त हो और अन्त में एक बच जाए: वह छियानवे छेदनकदायी राशि कहलाती है। यह राशि उतनी ही है, जितनी पंचमवर्ग का छठे वर्ग के साथ गुणाकार करने पर होती है । वह संख्या इस प्रकार होती है- प्रथम (पूर्वोक्त) वर्ग यदि छेदा जाए तो दो
१. चत्तारि य कोडिसया अउणत्तीसं च होंति कोडीओ । अणावन्नं लक्खा सत्तट्ठी चेव य सहस्सा ॥ १ ॥ दोय सया छण्णउया पंचमवग्गो समासओ होइ । एयस्स को वग्गो छट्ठो जो होइ तं वोच्छं ॥ २ ॥ लक्खं कोडाकोडी चउरासीइ भवे सहस्साइं । चत्तारि य सत्तट्ठा होंति सया कोडकोडीणं ॥ ३ ॥ चउयालं लक्खाई कोडीणं सत्त चेव य सहस्सा । तिणि सया सत्तयरी कोडीणं हुंति नायव्वा ॥ ४ ॥ पंचाणउई लक्खा एकावन्नं भवे सहस्साइं । छसोलसुत्तरसया एसो छट्ठो हवइ वग्गो ॥ ५ ॥
- प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्रांक २८
२. छत्तिन्नि तिन्नि सुन्नं पंचेव य नव य तिन्नि चत्तारि । पंचेव तिण्णि नव पंच सत्त तिन्नेव तिन्नेव ॥ १ ॥ चउ छद्दो चउ एक्को पण छक्केक्कगो य अट्ठेव । दो दो नव सत्तेव य अंकट्ठाणा परा हुंता ॥ - अनुयोग० वृत्तौ छ-ति-ति-सुं- पण-नव-ति-च-प-ति-ण-प-स-ति-ति- चउ-छ- दो । च-ए-प-दो-छ-ए-अ-बे-बे-स पढमक्खरसंतियट्ठाणा ॥ १ ॥ - प्र. म. वृ. पत्रांक २८१