Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक]
[२०५
इसी प्रकार एक-एक नारक की अप्कायपर्याय से लेकर यावत् वनस्पतिकायपन में (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए ।)
[४] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स बेइंदियत्ते केवतिया दव्विंदिया अतीया ? गोयमा ! अणंता। केवतिया बद्धेल्लगा? . .. गोयमा ! णत्थि । केवतिया ! पुरेक्खडा?
गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि दो वा चत्तारि वा छ वा संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा । एवं तेइंदियत्ते वि, णवरं पुरेक्खडा चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा । एवं चउरिदियत्ते वि नवरं पुरेक्खडा छ वा बारस वा अट्ठारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा ।
[१०४१-४ प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की द्वीन्द्रियपन में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? [१०४१-४ उ.] गौतम ! अनन्त हैं । [प्र.] (भगवन् ! वैसी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं । [प्र.] भगवन् ! पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी दो, चार, छह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं ।
इसी प्रकार (एक-एक नैरयिक की) त्रीन्द्रियपन में (अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियों के विषय में समझना चाहिए ।) विशेष यह है कि उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ चार, आठ या बारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं।
इसी प्रकार (एक-एक नैरयिक की) चतुरिन्द्रियपन में (अतीत और बद्ध द्रव्येन्द्रियों) के विषय में जानना चाहिए। विशेष यह है कि उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ छह, बारह, अठारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त हैं।
[५] पर्चेदियतिरिक्खजोणियत्ते जहा असुरकुमारत्ते । ... [१०४१-१] (एक-एक नैरयिक की) पंचेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याय में (अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों