Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र
कहलाता है । इसी प्रकार औदारिकशरीरधारी आहारकलब्धिसम्पन्न चतुर्दशपूर्वधर मुनि द्वारा आहारकशरीर बनाने पर औदारिक और आहारक शरीर की मिश्रता होने पर भी प्रधानता के कारण 'औदारिकमिश्र' ही कहा जाता है । (११) वैक्रियशरीरकाय-प्रयोग- वैक्रियशरीर रूप काय से होने वाला प्रयोग 'वैक्रियशरीरकायप्रयोग' कहलाता है । यह वैक्रियशरीरपर्याप्ति से पर्याप्त जीव को होता है । (१२) वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग- देवों और नारकों को अपर्याप्त अवस्था में कार्मणशरीर के साथ मिश्रित वैक्रियशरीर का प्रयोग । जब कोई पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य या वायुकायिक जीव वैक्रियशरीरी होकर अपना कार्य सम्पन्न करके कृतकृत्य हो चुकने के पश्चात् वैक्रियशरीर को त्यागने और औदारिकशरीर में प्रवेश करने का इच्छुक होता है, तब वहाँ वैक्रियशरीर के सामर्थ्य से औदारिकशरीरकायप्रयोग को ग्रहण करने से प्रवृत्त होने तथा वैक्रियशरीर को प्रधानता होने के कारण वह 'औदारिकमिश्र' नहीं, किन्तु वैक्रियमिश्रशरीरकाय प्रयोग कहलाता है । ( १३ ) आहारकशरीरकाय प्रयोग - आहारकशरीरपर्याप्ति से पयोप्त आहारकलब्धिारी चतुर्दशपूर्वधर मुनि के आहारकशरीर द्वारा होने वाला प्रयोग । (१४) आहारकमिश्रशरीर-काय प्रयोग आहारकशरीरी
मुनि जब अपना कार्य पूर्ण करके पुनः औदारिकशरीर को ग्रहण करता है, तब आहारकशरीर के बल से औदारिकशरीर में प्रवेश करने तथा आहारकशरीर की प्रधानता होने के कारण औदारिकमि श्रशरीर ने कहलाकर आहारकमिश्रशरीर ही कहलाता है। इस प्रकार का प्रयोग आहारकमिश्रशरीरकाय प्रयोग है । (१५) कार्मणशरीरकाय-प्रयोग - विग्रहगति में तथा केवलीसमुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में होने वाला प्रयोग कार्मणशरीरकाय-प्रयोग कहलाता है । तैजस और कार्मण दोनों सहचर हैं, अत: एक साथ दोनों का ग्रहण किया गया है।
समुच्चय जीवों और दण्डकों में प्रयोग की प्ररूपणा
१०६९. जीवाणं भंते ! कतिविहे पओगे पण्णत्ते ?
गोयमा ! पण्णरसविहे पओगे पण्णत्ते । तं जहा - सच्चमणप्पओगे जाव कम्मासरीरकायप्पआगे । [१०६९ प्र.] भगवन् ! जीवों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे हैं ?
[१०६९ उ.] गौतम ! जीवों के पन्द्रह प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं, वे इस प्रकार - सत्यमन: प्रयोग से ( लेकर) कार्मणशरीरकाय- प्रयोग तक ।
१०७०. रइयाणं भंते ! कतिविहे पओगे पण्णत्ते ?
गोयमा ! एक्कारसविहे पओगे पण्णत्ते । तं जहा - सच्चमणप्पओगे १ जाव असच्चामोसवइप्पओगे ८ वेडव्वियसरीरकायप्पओगे ९ वेडव्वियमीससरीरकायप्पओगे १० कम्मासरीरकायप्पओगे ११ ।
[१०७० प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे हैं ?
[१०७० उ.] गौतम ! (उनके) ग्यारह प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं। वे इस प्रकार - (१-८)
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ३१९