Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक]
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रूप के अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? · [१०४८-४ उ.] गौतम ! नहीं हैं । [प्र.] (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं । [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) असंख्यात हैं । [५] एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते वि।
[१०४८-५] (नैरयिकों की) सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में (अतीत बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता) भी इसी प्रकार (जाननी चाहिए ।).
१०४९. एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते भाणियव्वं ।
णवरं वणस्सइकाइयाणं विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते य पुरेक्खडा अणंता; सव्वेसिं मणूस-सव्वट्ठसिद्धगवजाणं सट्टाणे बद्धेल्लगा असंखेजा, परट्ठाणे बद्धेल्लगा णत्थि; वणस्सइकाइयाणं सट्ठाणे बद्धेल्लगा अणंता ।
[१०४९] (असुरकुमारों से लेकर) यावत् (बहुत-से) पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों की (नैरयिकत्व से लेकर) सर्वार्थसिद्ध देवत्वरूप (तक) में (अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की) प्ररूपणा इसी प्रकार (पूर्ववत्) करनी चाहिए।
- विशेष यह है कि वनस्पतिकायिकों की, विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व तथा सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं। मनुष्यों और सर्वार्थसिद्धदेवों को छोड़कर सबकी स्वस्थान में बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) असंख्यात हैं, परस्थान में बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) नहीं हैं । वनस्पतिकायिकों की स्वस्थान में बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं ।
१०५०. [१] मणुस्साणं णेरइयत्ते अतीता अणंता, बद्धेल्लगा णत्थि, पुरेक्खडा अणंता ।
[१०५०-१] मनुष्यों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ नहीं हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं ।
[२] एवं जाव गेवेजगदेवत्ते । णवरं सट्ठाणे अतीता अणंता, बद्धेल्लगा सिय संखेज्जा सिय असंखेजा, पुरेक्खडा अणंता । . [१०५०-२] मनुष्यों की (असुरकुमारत्व से लेकर) यावत् ग्रैवेयकदेवत्वरूप में (अतीत, बद्ध, पुरस्कृत