Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२१२]
[प्रज्ञापनासूत्र
पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह या चौवीस होती हैं, अथवा संख्यात होती हैं ।
[४] वाणमंतर-जोतिसियत्ते जहा णेरइयत्ते (सु. १०४१)।
[१०४६-४] (इन्हीं की प्रत्येक की) वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवत्व के रूप में (अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता सू. १०४१ में उल्लिखित) नैरयिकत्वरूप की अतीतादि की वक्तव्यता के अनुसार (कहना चाहिए ।) __ [५] सोहम्मगदेवत्ते अतीया अणंता । बद्धेल्लगा णत्थि । पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सई णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेजा वा ।
[१४६-५] (इन चारों की प्रत्येक की) सौधर्मदेवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं है और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस अथवा संख्यात होती हैं ।
[६] एवं जाव गेवेजगदेवत्ते । । [१०४६-६] (इन्हीं चारों की प्रत्येक की) (ईशानदेवत्व से लेकर) यावत् ग्रैवेयकदेवत्व के रूप में (अतीतादि द्रव्येन्द्रियों को वक्तव्यता) इसी प्रकार (समझनी चाहिए ।)
[७] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियत्ते अतीया कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ।
केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि अट्ठ।।
[१०४६-७] (इन चारों की प्रत्येक की) विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती हैं । जिसकी होती हैं उसकी आठ होती हैं ।
[प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ हैं । [प्र.] कितनी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती हैं, जिसकी होती हैं , उसके आठ होती हैं। [८] एगमेगस्स णं भंते ! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते केवतिया