Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक ]
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के भी (कर्कश-गुरुगुण अनन्त समझने चाहिए।) इसी तरह (इनकी जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के) मृदुलघुगुण भी (अनन्त समझने चाहिए ।)
[४] एतेसि णं भंते ! बेइंदियाणं जिभिंदिय-फासेंदियाणं कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाणं कक्खडगरुयगुण-मउयलहुयगुणाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा बेइंदियाणं जिब्भिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा, फासें दियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुणेहिंतो तस्स चेव मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, जिभिंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा । .
। [९८७-४ प्र.] भगवन् ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुणों तथा मृदुलघुगुणों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[९८७-४ उ.] गौतम ! सबसे थोड़े द्वीन्द्रियों के जिह्वेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण हैं, (उनसे) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्तगुणे हैं। स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुणों से उसी (इन्द्रिय) के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं (और उससे भी) जिह्वेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं।
[५] एवं जाव चउरिंदिय त्ति। णवरं इंदियपरिवुड्डी कायव्वा। तेइंदियाणं घाणेंदिए थोवे, चउरि दियाणं चक्खिदिए थोवे । सेसं तं चेव ।
[९८७-५] इसी प्रकार (द्वीन्द्रियों के संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, प्रदेश, अवगाहना और अल्पबहुत्व के समान) यावत् चतुरिन्द्रिय (त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय के संस्थानादि) के विषय में कहना चाहिए। विशेष यह है कि (उत्तरोत्तर एक-एक) इन्द्रिय की परिवृद्धि करनी चाहिए। त्रीन्द्रिय जीवों की घ्राणेन्द्रिय थोड़ी होती है, (इसी प्रकार) चतुरिन्द्रिय जीवों की चक्षुरिन्द्रिय थोड़ी होती है। शेष (सब वक्तव्यता) उसी तरह (पूर्ववत् द्वीन्द्रियों के समान) ही है।
९८८. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणूसाण य जहा णेरइयाणं (सु. ९८३)।णवरं फासिंदिए छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते। तं जहा - समचउरंसे १ णग्गोहपरिमंडले २ साती ३ खुज्जे ४ वामणे ५ हुंडे ६।
[९८८] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों की इन्द्रियों की संस्थानादि सम्बन्धी वक्तव्यता (सूत्र ९८३ में अंकित) नारकों की इन्द्रिय-संस्थानदि सम्बन्धी वक्तव्यता के समान समझनी चाहिए। विशेषता यह है कि उनकी स्पर्शेनेन्द्रिय छह प्रकार के संस्थानों वाली होती है। वे (छह संस्थान) इस प्रकार हैं- (१) समचतुरस्न, (२) न्यग्रोधपरिमण्डल, (३) सादि, (४) कुब्जक, (५) वामन और (६) हुण्डक ।
९८९. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं (सु. ९८४)।