Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक]
[१९९
आठ प्रकार और चौवीस दण्डकों में उनकी प्ररूपणा की गई हैं । चौवीस दण्डकों की अतीत-बद्ध-पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा
१०३०. एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवतिया दव्विंदिया अतीया? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयया ! अट्ठ । केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अट्ठ वा सोलस वा सत्तरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । [१०३० प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०३० उ.] गौतम ! अनन्त हैं । • [प्र.] (भगवन् ! एक-एक नैरयिक की) कितनी (द्रव्येन्द्रियाँ) बद्ध हैं ? [उ.] गौतम ! आठ हैं । [प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक की पुरस्कृत (आगे होने वाली) द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ?
[उ.] गौतम ! (आगामी द्रव्येन्द्रियाँ) आठ हैं, सोलह हैं, सत्तरह हैं, संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ।
१०३१.[१] एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स केवतिया दक्विंदिया अतीता? गोयमा ! अणंता । केवतिया बद्धेल्लगा? गोयमा ! अट्ठ। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अट्ठ वा णव वा संखेज्जा वा असंखेजा वा अणंता वा । [१०३१-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [१०३१-१ उ.] गौतम ! अनन्त हैं। [प्र.] (भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के) कितनी (द्रव्येन्द्रियाँ) बद्ध हैं ?