Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक]
[१६९
अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
- [९८५-७ उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा सबसे कम है, प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणी (अधिक) है ।
[८] पुढविकाइयाणं भंते ! फासिंदियस्स केवतिया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता। एवं मउयलहुयगुणा वि । [९८५-८ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण कितने कहे गए हैं ?
[९८५-८ उ.] गौतम ! (वे) अनन्त कहे हैं। इसी प्रकार (उसके) मृदु-लघुगुणों के विषय में भी समझना चाहिए ।
[९] एतेसिणं भंते ! पुढविकाइयाणं फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुण-मउयलहुयगुणाणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइयाणं फासेंदियस्स कक्खडगरुयगुणा, तस्स चेव मउयलहुयगुणा अणंतगुणा ।
[९८५-९ प्र.] भगवन् ! इन पृथ्वीकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुणों और मृदु-लघुगुणों में से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
[९८५-९ उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिकों के स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश और गुरु गुण सबसे कम हैं, (उनकी अपेक्षा) मृदु तथा लघु गुण अनन्तगुणे हैं ।
९८६. एवं आउक्काइयाण वि जाव वणप्फइकाइयाणं। णवरं संठाणे इमो विसेसो दट्ठव्वोआउक्काइयाणं थिबुगबिंदुसंठाणसंठिए पण्णत्ते, तेउक्काइयाणं सूईकलावसंठाणसंठिए पण्णत्ते, वाउक्काइयाणं पडागासंठाणसंठिए पण्णत्ते, वणप्फइकाइयाणं णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते।
[९८६] पृथ्वीकायिकों (के स्पर्शनेन्द्रिय संस्थान के बाहल्य आदि) की (सू. ९८५-१ से ९ तक में उल्लिखित) वक्तव्यता के समान अप्कायिकों से लेकर (तेजस्कायिक, वायुकायिक, और) वनस्पतिकायिकों तक (के स्पर्शनेन्द्रियसम्बन्धी संस्थान, बाहल्य आदि) की वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए: किन्तु इनके संस्थान के विषय में यह विशेषता समझ लेनी चाहिए - अप्कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय (जल) बिन्दु के आकार की कही है, तेजस्कायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय सूचीकलाप (सूइयों के ढेर) के आकार की कही है, वायुकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय पताका के आकार की कही है तथा वनस्पतिकायिकों की स्पर्शनेन्द्रिय का आकार नाना प्रकार का कहा गया है।
९८७.[१] बेइंदियाणं भंते ! कति इंदिया पण्णत्ता ।