Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद: द्वितीय उद्देशक]
[१९३
[१०१४-२ प्र.] इसी प्रकार नारकों से लेकर वैमानिकों तक (पूर्ववत् कहना चाहिए) । विशेष यह है कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, (उसके उतने ही अवग्रहण समझने चाहिए ।) ॥७॥
१०१५.[१] कतिविहे णं भंते ! इंदियअवाए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे इंदियअवाये पण्णत्ते । तं जहा- सोइंदियअवाए जाव फासेंदियअवाए। [१०१५-१ प्र.] भगवन् ! इन्द्रिय-अवाय कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१०१५-१ उ.] गौतम ! इन्द्रिय-अवाय पांच प्रकार का गया कहा है, वह इस प्रकार- श्रोत्रेन्द्रिय अवाय (से लेकर) यावत् स्पर्शेन्द्रिय-अवाय ।
[२] एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। नवरं जस्स जत्तिया इंदिया अस्थि ॥८॥
[१०१५-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक (अवाय के विषय में कहना चाहिए) । विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, (उसके उतने ही अवाय कहने चाहिए।) ॥८॥
१०१६.[१] कतिविहा णं भंते ! ईहा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा ईहा पण्णत्ता । तं जहा- सोइंदियईहा जाव फासेंदियईहा । [१०१६-१ प्र.] भगवन् ! ईहा कितने प्रकार की कही गई है ?
[१०१६-१ उ.] गौतम ! ईहा पांच प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार- श्रोत्रेन्द्रिय ईहा, यावत् स्पर्शेन्द्रिय-ईहा ।
[२] एवं जाव वेमाणियाणं । णवरं जस्स जति इंदिया ॥९॥
'[१०१६-२] इसी प्रकार (नैरयिकों से लेकर) यावत् वैमानिकों तक (ईहा के विषय में कहना चाहिए।) विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों, (उसके उतनी ही ईहा कहनी चाहिए।) ॥९॥
१०१७. कतिविहे णं भंते ! उग्गहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे उग्गहे पण्णत्ते । तं जहा- अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। [१०१७ प्र.] भगवन् ! अवग्रह कितने प्रकार का कहा गया है ? [१०१७ उ.] गौतम ! अवग्रह दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार- अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह। १०१८. वंजणोग्गहे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! चउव्विहे पण्णत्ते । तं जहा- सोइंदियवंजणोग्गहे घाणिंदियवंजणोग्गहे जिब्भिंदियवंजणोग्गहे फासिंदियवंजणोग्गहे ।