Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौदहवाँ कषायपद]
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[९६९-१ उ.] गौतम ! चार स्थानों (कारणों ) से क्रोध की उत्पत्ति होती है, वे इस प्रकार - (१) क्षेत्र (खेत या खुली जमीन) को लेकर, (२) वास्तु (मकान आदि) को लेकर, (३) शरीर के निमित्त से और (४) उपधि (उपकरणों-साधनसामग्री) के निमित्त से ।
[२] एवं णेरइयादीणं जाव वेमाणियाणं ।
[९६९-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक (क्रोधोत्पत्ति के विषय में प्ररूपणा करनी चाहिए ।) . [३] एवं माणेण वि मायाए वि लोभेण वि । एवं एते वि चत्तारि दंडगा ।
[९६९-३] क्रोधोत्पत्ति के विषय में जैसा कहा हैं, उसी प्रकार मान, माया और लोभ की उत्पत्ति के विषय में भी उपर्युक्त चार कारण कहने चाहिए । इस प्रकार ये चार दण्डक (आलापक) होते हैं।
विवेचन - क्रोधादि कषायों की उत्पत्ति के चार-चार कारण - प्रस्तुत सूत्र (९३१-१,२,३) में क्रोधादि कषायों की उत्पत्ति के क्षेत्र, वास्तु, शरीर और उपधि, ये चार-चार कारण प्रस्तुत किये गए हैं ।
क्षेत्र, वास्तु, शरीर और उपधि, क्रोधादि की उत्पत्ति के कारण क्यों ? - क्षेत्र का अर्थ खेत या जमीन होता है, परन्तु नारकों के लिए नैरयिक क्षेत्र, तिर्यञ्चों के लिए तिर्थक्षेत्र, मनुष्य के लिए मनुष्यक्षेत्र के निमित्त एवं देवों के लिए देवक्षेत्र के निमित्त से क्रोधादि कषायोत्पत्ति समझनी चाहिए। वत्थु' के दो अर्थ होते है-वास्तु और वस्तु । वास्तु का अर्थ मकान, इमारत, बंगला, कोठी, महल आदि और वस्तु का अर्थ हैसजीव, निर्जीव पदार्थ । महल, मकान आदि को लेकर भी क्रोधादि उमड़ते हैं। सजीव वस्तु में माता, पिता, स्त्री, पुत्र या मनुष्य तथा किसी अन्य प्राणी को लेकर क्रोध, संघर्ष, अभिमान आदि उत्पन्न होते हैं। निर्जीव वस्तु पलंग, सोना, चांदी, रत्न, माणक, मोती, वस्त्र, आभूषण आदि को लेकर क्रोधादि उत्पन्न होते हैं। दुःस्थित या विरूप या सचेतन-अचेतन शरीर को लेकर भी क्रोधादि उत्पन्न होते हैं । अव्यवस्थित एवं बिगड़े हुए उपकरणादि को लेकर अथवा चौरादि के द्वारा अपहरण किये जाने पर क्रोधादि उत्पन्न होता है । जमीन, मकान, शरीर, और अन्य साधनों को जब किसी कारण से हानि या क्षति पहुँचती है तो क्रोधादि उत्पन्न होते हैं । यहाँ 'उपधि' में जमीन, मकान, तथा शरीर के सिवाय शेष सभी वस्तुओं का समावेश समझ लेना चाहिए। कषायों के भेद-प्रमेद
९६२.[१] कतिविहे णं भंते ! कोहे पण्णत्ते?
१.
(क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २९०-२९१ (ख) प्रज्ञापनासूत्र प्रमेयबोधिनी टीका भा. ३, पृ. ५५९