Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र
[९७६-३ प्र.] भगवन् ! जिह्वेन्द्रिय कितनी पृथु (विस्तृत) कही गई है ? [९७६-३ उ.] गौतम ! जिह्वेन्द्रिय अंगुल-पृथक्त्व (दो अंगुल से नौ अंगुल तक) विशाल (विस्तृत) है। [४] फासिंदिए णं पुच्छा । गोयमा ! सरीरपमाणमेत्ते पोहत्तेणं पण्णत्ते । [९७६-४ प्र.] भगवन् ! स्पर्शेन्द्रिय के पृथुत्व (विस्तार) के विषय में पृच्छा (का समाधान क्या है ?) [९७६-४ उ.] गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय शरीरप्रमाण पृथु (विशाल) कही है ।
विवेचन - द्वितीय-तृतीय बाहल्य-पृथुत्वद्वार - प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. ९७५-९७६) में दो द्वारों के माध्यम से पांचों इन्द्रियों के बाहल्य (स्थूलता) एवं पृथुत्व (विस्तार) का प्रमाण प्रतिपादित किया गया है । ____सभी इन्द्रियों का बाहल्य समान क्यों? - बाहल्य को अपेक्षा से सभी इन्द्रियाँ अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। इस विषय में एक शंका है कि 'यदि स्पर्शेन्द्रिय का बाहल्य (स्थूलता) अंगुल का असंख्यातवाँ भाग प्रमाण है तो तलवार छुरी आदि का आघात लगने पर शरीर के अन्दर वेदना का अनुभव क्यों होता है ?' इसका समाधान यह है कि जैसे चक्षुरिन्द्रिय का विषय रूप है, घ्राणेन्द्रिय का विषय गन्ध है, वैसे ही स्पर्शेन्द्रिय का विषय शीत स्पर्श है: किन्तु जब तलवार और छुरी आदि का आघात लगता है, तब शरीर में शीत आदि स्पर्श का वेदन नहीं होता, अपितु दुःख का वेदन होता है। दुःखरूप उस वेदन को आत्मा समग्र शरीर से अनुभव करती है, केवल स्पर्शेन्द्रिय से नहीं । जैसे - ज्वर आदि का वेदन सम्पूर्ण शरीर में होता है। शीतलपेय (ठंडे शर्बत आदि) के पीने से जो भीतर में (शरीर में) शीतस्पर्शवेदन का अनुभव होता है, उसका कारण यह है कि स्पर्शेन्द्रिय सर्वप्रदेशपर्यन्तवर्ती होती है। इसलिए त्वचा के अन्दर तथा खाली जगह के ऊपर भी स्पर्शेन्द्रिय का सद्भाव होने से शरीर के अन्दर शीतस्पर्श का अनुभव होना युक्तियुक्त है।
इन्द्रियों का पृथुत्व - जिह्वेन्द्रिय के सिवाय शेष चारों इन्द्रियों का पृथुत्व (विशालता = विस्तार) अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। जिह्वेन्द्रिय का पृथुत्व अंगुलपृथक्त्वप्रमाण है, किन्तु यहाँ यह ध्यान रखना है कि स्पर्शेन्द्रिय के अतिरिक्त शेष चारों इन्द्रियों का पृथुत्व (विस्तार) आत्मांगुल से समझना चाहिए। केवल स्पर्शेन्द्रिय का पृथुत्व उत्सेधांगुल से जानना चाहिए। चतुर्थ-पंचम कतिप्रदेशद्वार एवं अवगाढद्वार
९७७.[१] सोइंदिए णं भंते ! कतिपएसिए पण्णत्ते ?
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २९४ २. वही, मलय. वृत्ति, पत्रांक २९४