Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तेरहवां परिणामपद]
[१४१
वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की परिणामसमबन्धी प्ररूपणा
९४४. वाणमंतरा गतिपरिणामेणं देवगइया जहा असुरकुमारा (सु. ९३९ [१])।
[९४४] वाणव्यन्तर देव गतिपरिणाम से देवगतिक हैं शेष (समस्त परिणामसम्बन्धी वक्तव्यता) (सू. ९३९-१ में उल्लिखित) असुरकुमारों की तरह (समझना चाहिए।) ।
९४५. एवं जोतिसिया वि। णवरं लेस्सापरिणामेणं तेउलेस्सा।
[९४५] इसी प्रकार ज्योतिष्कों के समस्त परिणामों के विषय में भी समझना चाहिए। विशेष यह कि लेश्यापरिणाम से (वे सिर्फ) तेजोलेश्या वाले होते हैं।
९४६. वेमाणिया वि एवं चेव ।णवरं लेस्सापरिणामेणं तेउलेस्सा वि पम्हलेस्सा वि सुक्कलेस्सा वि।सेत्तं जीवपरिणामे ।
[९४६] वैमानिकों की परिणामसम्बन्धी प्ररूपणा भी इसी प्रकार (समझनी चाहिए।) विशेष यह कि लेश्यापरिणाम से वे तेजोलेश्या वाले भी होते हैं, पद्मलेश्या वाले भी और शुक्ललेश्या वाले भी होते हैं।
यह जीवप्ररूपणा हुई।
विवेचन - वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की परिणामसम्बन्धी प्ररूपण - प्रस्तुत तीन सूत्रों में से सू. ९४४ में वाणव्यन्तर देवों की, सू. ९४५ में ज्योतिष्क देवों की एवं सू. ९४६ में वैमानिक देवों की परिणामसम्बन्धी प्ररूपणा कुछेक बातों को छोड़कर असुरकुमारों के अतिदेशपूर्वक की गई है।
ज्योतिष्कों और वैमानिकों के लेश्यापरिणाम में विशेषता - ज्योतिष्कों में सिर्फ तेजोलेश्या ही होती है, जबकि वैमानिकों में तेजोलेश्या, पद्मलेश्या एवं शुक्ललेश्या ये तीन शुभ लेश्याएँ होती हैं; तीन अशुभ लेश्याएँ नहीं होती हैं। अजीवपरिणाम और उसके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा
९४७. अजीवपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! दसविहे पण्णत्ते । तं जहा- बंधणपरिणामे १ गतिपरिणामे २ संठाणपरिणामे ३ भेदपरिणामे ४ वण्णपरिणामे ५ गंधपरिणामे ६ रसपरिणामे ७ फासपरिणामे ८ अगरुयलहुयपरिणामे ९ सद्दपरिणामे १० । । [९४७ प्र.] भगवन् ! अजीवपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ?
(क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति. पत्रांक २८७ (ख) 'पीतान्तलेश्याः ' -तत्त्वार्थ. अ. ४, सू.७ (ख) पीतपद्मशुललेश्याः द्वि-त्रि-शेषेषु । -तत्त्वार्थ. अ. ४, सू. २३