Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बारहवाँ शरीरपद]
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पूरण और अपहरण में जानना। आशय यह है कि २५६ अंगुलवर्गप्रमाण श्रेणिखण्ड में यदि एक-एक ज्योतिष्क की स्थापना की जाए तो वे सम्पूर्ण प्रतर को पूर्ण कर पाते हैं। अथवा यदि एक-एक ज्योतिष्क के अपहार से एक-एक दो सौ छप्पन अंगुल वर्गप्रमाण श्रेणिखण्ड का अपहार होता है, तब सब मिलकर ज्योतिष्कों की पूर्णता होती है। दूसरी ओर सकलप्रतर पूर्ण होता है। ज्योतिष्कों के मुक्त वैक्रियशरीर मुक्त समुच्चयवत् और आहारकशरीर नारकवत्। शेष पूर्ववत् समझना चाहिए। वैमानिकों के क्षेत्रतः वैक्रियशरीर परिमाण असंख्यात श्रेणीप्रमाण हैं । अर्थात्- असंख्यात श्रेणियों में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उतने ही शरीर हैं। इन श्रेणियों का परिणाम प्रतर का असंख्यातवाँ भाग है, किन्तु नारकादि की अपेक्षा से प्रतर के असंख्यातवें भाग के परिमाण में कुछ भिन्नता है, विष्कम्भयूची तृतीयवर्गमूल (१६४१६=२५६) गुणित द्वितीय वर्गमूल (४X४ = १६) है, अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल के घन के बराबर श्रेणियाँ हैं। शेष सब पूर्वोक्त के समान समझना चाहिए ।
॥ प्रज्ञापनासूत्र : बारहवाँ शरीरपद समाप्त ॥
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २८२-२८४ तक