Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र
मृषाभाषक असंख्यातगुणे इसलिए हैं कि कोधादि कषायों के वशीभूत होकर परवंचनादि बुद्धि से बोलने वाले संसार में प्रचुर संख्या में मिलते हैं, वे सभी मृषाभाषी हैं। उनसे असंख्यातगुणे अधिक असत्यामृषाभाषक हैं, क्योंकि द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव असत्यामृषाभाषक की कोटि में आते हैं। इन सबसे अनन्तगुणे अभाषक इसलिए हैं कि अभाषकों की गणना से सिद्ध जीव एवं एकेन्द्रिय जीव आते हैं, वे दोनों ही अनन्त हैं। सिद्ध जीवों से भी वनस्पतिकायिक जीव अनन्तगुणे हैं।'
॥ प्रज्ञापनासूत्र : ग्यारहवाँ भाषापद समाप्त ॥
१. वही, मलय. वृत्ति, पत्रांक २६८-२६९