Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१०६ ]
[ प्रज्ञापनासूत्र
हैं। द्रव्यतः-मुक्त औदारिक शरीर अभवसिद्धिक (अभव्य) जीवों से अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं।
[२] केवइया णं भंते ! वेउव्वियसरीरया पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं असंखेजा, असंखेजाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ,खेत्तओ असंखेजाओ सेढीओ पयरस्स असंखेजतिभागो। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अणंता, अणंताहि उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, जहा ओरालियस्स मुक्केल्लगा तहेव वेउव्वियस्स वि भाणियव्वा।
[९१०-२ प्र.] भगवन् ! वैकिय शरीर कितने कहे गए हैं ?
[९१०-२ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे हैं-बद्ध और मुक्त, उनमें जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं, कालत: वे असंख्यात उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं, क्षेत्रतः वे असंख्यात श्रेणी-प्रमाण तथा (वे श्रेणियां) प्रतर के असंख्यातवें भाग हैं। उनमें जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। कालतः वे अनन्त उत्सर्पिणियों-अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं; जैसे औदारिक शरीर के मुक्तों के विषय में कहा गया है, वैसे ही वैकियशरीर के मुक्तों के विषय में भी कहना चाहिए।
[३] केवइया णं भंते ! आहारगसरीरया पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं सिय अस्थि सिव णत्थि। जति अत्थि जहणणेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्तं। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता जहा ओरालियस्स मुक्केल्लया तहा भाणियव्वा।
[९१०-३ प्र.] भगवन् ! आहारक शरीर कितने कहे गए हैं ?
[९१०-३ उ.] गौतम ! आहारक शरीर दो प्रकार के कहे हैं, वे इस प्रकार-बद्ध और मुक्त। उनमें जो बद्ध हैं, वे कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते। यदि हों तो जघन्य एक, दो या तीन होते हैं, उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं। उनमें जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। जैसे औदारिक शरीर के मुक्त के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ कहना चाहिए।
[४] केवइया णं भंते ! तेयगसरीरया पण्णत्ता?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा - बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सिद्धेहिंतो अणंतगुणा सव्वजीवाणंतभागूणा। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लया ते णं अणंता, अणंताहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, दव्वओ सव्वजीवेहितो गांतगणा, जीववग्गस्स अणंतभागो।