Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
बारसमं सरीरपयं
बारहवाँ शरीरपद पांच प्रकार के शरीरों का निरूपण
९०१. कति णं भंते! सरीरा पण्णत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पण्णत्ता।तं जहा-ओरालिए १ वेउव्विए २ आहारए ३ तेयए ४ कम्मए ५। [९०१ प्र.] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं?
[९०१ उ.] गौतम ! शरीर पांच प्रकार के कहे गए हैं, वे इस प्रकार-(१) औदारिक, (२) वैक्रिय, (३) आहारक, (४) तैजस और (५) कार्मण।
विवेचन-पांच प्रकार के शरीरों का निरूपण-प्रस्तुत सूत्र (९०१) में जैनसिद्धान्त प्रसिद्ध औदारिक आदि पांच प्रकार के शरीरों का निरूपण किया गया है।
औदारिक शरीर की व्याख्या-उदार से औदारिक शब्द बना है। वृत्तिकार ने उदार के तीन अर्थ किए हैं-(१) जो शरीर उदार अर्थात्-प्रधान हो। औदारिक शरीर की प्रधानता तीर्थंकरों और गणधरों के शरीर की अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि औदारिक शरीर के अतिरिक्त अन्य शरीर, यहाँ तक कि अनुत्तर विमानवासी देवों का शरीर भी अनन्तगुणहीन होता है। (२) उदार अर्थात् विस्तारवान् विशाल शरीर । औदारिक शरीर का अवस्थितस्वभाव (आजीवन स्थायीरूप) से विस्तार कुछ अधिक एक हजार योजन प्रमाण होता है, जबकि वैक्रियशरीर का इतना अवस्थितप्रमाण नहीं होता। उसका अधिक से अधिक अवस्थितप्रमाण पांच सौ धनुष का होता है और वह भी सिर्फ सातवीं नरकपृथ्वी में ही, अन्यत्र नहीं। जो उत्तरवैकियशरीर एक लाख योजनप्रमाण तक का होता है, वह भवपर्यन्त स्थायी न होने के कारण अवस्थित नहीं होता। (३) सैद्धान्तिक परिभाषानुसार उदार का अर्थ होता है-मांस, हड्डियाँ, स्नायु आदि से अवबद्ध शरीर। उदार ही औदारिक कहलाता है।
वैक्रियशरीर की व्याख्या (१) प्राकृत के वेउव्विय का संस्कृत मं वैकुर्विक रूप होता है। विकुर्वणा के अर्थ में विकुर्व धातु से वैकुर्विक शब्द बनता है, जिसका अर्थ होता है-विविध क्रियाओं को करने में सक्षम शरीर । (२) अथवा विविध या विशिष्ट (विलक्षण) क्रिया विक्रिया है। विक्रिया करने वाला शरीर वैक्रिय है।
आहारक, तैजस और कार्मण शरीर की व्याख्या-चतुर्दशपूर्वधारी मुनि के द्वारा कार्य होने पर