Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ग्यारहवाँ भाषापद]
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(४) नामसत्य, (५) रूपसत्य, (६) प्रतीत्यसत्य, (७) व्यवहारसत्य, (८) भावसत्य, (९) योगसत्य और (१०) दसवाँ औपम्यसत्य । ॥१९४ ।।
८६३. मोसा णं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता । तं जहा - कोहणिस्सिया १ माणणिस्सिया २ मायाणिस्सिया ३ लोभणिस्सिया ४ पेज्जणिस्सिया ५ दोसणिस्सिया ६ हासणिस्सिया ७ भयणिस्सिया ८ अक्खाइयाणिस्सिया ९ उवघायणिस्सिया १० ।
कोहे १ माणे २ माया ३ लोभे ४ पेज्जे ५ तहेव दोसे ६ य ।
हास ७ भए ८ अक्खाइय ९ उवघाइयणिस्सिया १० दसमा ॥१९५॥ [८६३ प्र.] भगवन् ! मृषा - पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ?
[८६३ उ.] गौतम ! (वह) दस प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - (१) क्रोधनिःसृता, (२) माननिःसृता, (३) मायानिःसृता, (४) लोभनिःसृता, (५) प्रेयनिःसृता (रागनिःसृता), (६) द्वेषनिःसृता, (७) हास्यनि:सृता, (८) भयनि:सृता, (९) आख्यायिकानि:सृता और (१०) उपघातनि:सृता ।
[संग्रहणीगाथार्थ - ] क्रोधनिःसृत, माननिःसृत, मायानिःसृत, लोभनि:सृत, प्रेय (राग) - निःसृत, तथा द्वेषनिःसृत, हास्यनिःसृत, भयनिःसृत, आख्यायिकानिःसृत और दसवाँ उपघातनि:सृत असत्य। ॥१९५॥
८६४. अपज्जत्तिया णं भंते ! भासा कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - सच्चामोसा य असच्चामोसा य । [८६४ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ?
[८६४ उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - सत्या-मृषा और असत्यामृषा ।
८६५. सच्चामोसा णं भंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता । तं जहा-उप्पण्णमिस्सिया १ विगयमिस्सिया २ उप्पण्णविगयमिस्सिा ३ जीवमिस्सिया ४ अजीवमिस्सिया ५ जीवाजीवमिस्सिया ६ अणंतमिस्सिया ७ परित्तमिस्सिया ८ अद्धामिस्सिया ९ अद्धद्धामिस्सिया १० ।
[८६५ प्र.] भगवन् ! सत्यामृषा-अपर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ?
[८६५ उ.] गौतम ! (वह) दस प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है - (१) उत्पन्नमिश्रिता, (२) विगतमिश्रिता, (३) उत्पन्ना-विगतमिश्रिता, (४) जीवमिश्रिता, (५) अजीवमिश्रिता,