Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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८०]
[प्रज्ञापनासूत्र
गोयमा ! ठियाइं गेण्हति, णो अठियाइं गेण्हति ।
[८७७-१ प्र.] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, सो स्थित (गमनक्रियारहित) द्रव्यों को ग्रहण करता है या अस्थित (गमन क्रियावान्) द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-१ उ.] गौतम ! (वह) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता।
[२] जाइं भंते ! ठियाइं गेण्हति ताई किं दव्वओ गेण्हति ? खेत्तओ गेण्हति ? कालओ गेण्हति ? भावओ गेण्हति ?
गोयमा ! दव्वओ वि गेण्हति, खेत्तओ वि गेण्हति, कालओ वि गेण्हति, भावओ वि गेण्हति।
[८७७-२] भगवन् ! (जीव) जिन स्थित द्रव्यों को (भाषा के रूप में) ग्रहण करता है, उन्हें क्या (वह) द्रव्य से ग्रहण करता है, क्षेत्र से ग्रहण करता है, काल से ग्रहण करता है, अथवा भाव से ग्रहण करता है ?
[८७७-२] गौतम ! (वह उन स्थित द्रव्यों को) द्रव्यतः भी ग्रहण करता है, क्षेत्रतः भी ग्रहण करता है, कालतः भी ग्रहण करता है और भावतः भी ग्रहण करता है।
[३] जाइं दव्वओ गेण्हति ताई किं एगपएसियाई गिण्हति दुपएसियाइं गेण्हति जाव अणंतपएसियाइं गेण्हति ?
गोयमा ! णो एगपएसियाई गेण्हति जाव णो असंखेजपएसियाइं गेण्हति, अणंतपएसियाई गेण्हति।
[८७७-३ प्र.] भगवन् ! (जीव) जिन (स्थित द्रव्यों) को द्रव्यतः ग्रहण करता है, क्या वह उन एकप्रदेशी (द्रव्यों) को ग्रहण करता है, द्विप्रदेशी को ग्रहण करता है? यावत अनन्तप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-३ उ.] गौतम! (जीव) न तो एकप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् न असंख्येयप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है, (किन्तु) अनन्तप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है।
[४] जाई खेत्तओ ताई किं एगपएसोगाढाई गेण्हति दुपएसोगाढाई गेण्हति जाव असंखेजपएसोगाढाइं गेण्हति ? ___गोयमा ! णो एगपएसोगाढाइं गेण्हति जाव णो संखेजपएसोगाढाई गेण्हति, असंखेजपएसोगाढाइं गेण्हति ।
[८७७-४ प्र.] जिन (स्थित द्रव्यों को जीव) क्षेत्रत: ग्रहण करता है, क्या (वह जीव) एकप्रदेशावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, द्विप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् असंख्येयप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है?