Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
८२ ]
[प्रज्ञापनासूत्र
गेण्हति ?
गोयमा ! एगगुणकालाई पि गेण्हति जाव अणंतगुणकालाई पि गेण्हति। एवं जाव सुक्किलाई पि।
[८७७-८ प्र.] भगवन् ! वर्ण से काले जिन (स्थित द्रव्यों) को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) उन एकगुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? अथवा यावत् अनन्तगुण काले द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
- [८७७-८ उ.] गौतम ! (वह) एकगुणकृष्ण (भाषाद्रव्यों) को भी ग्रहण करता है और यावत् अनन्तकृष्ण (भाषाद्रव्यों) को भी ग्रहण करता है। इसी प्रकार यावत् शुक्ल वर्ण तक के ग्राह्य भाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में भी कहना चाहिए।
[९] जाइं भावओ गंधमंताई गेण्हति ताई किं एगगंधाइं गेण्हति दुगंधाइं गेण्हति ?
गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च एगगंधाई पि गेण्हति दुगंधाई पि गेण्हति, सव्वग्गहणं पडुच्च नियमा दुगंधाइं गेण्हति ।।
[८७७-९ प्र.] भावतः जिन गन्धवान् भाषाद्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) एक गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? या दो गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-९ उ.] गौतम ! ग्रहण द्रव्यों की अपेक्षा से (वह) एक गन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, तथा दो गन्ध वाले (द्रव्यों को) भी ग्रहण करता है: (किन्तु) सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमत: दो गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है।
[१०] जाइं गंधओ सुब्भिगंधाइं गेण्हति ताई किं एगगुणसुब्भिगंधाइं गेण्हति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाइं गेण्हति ? - गोयमा ! एगगुणसुब्भिगंधाई पि गेहति जाव अणंतगुणसुब्भिगंधाइँ पि गेण्हति। एवं दुन्भिगंधाइं पि गेण्हति ।
[८७७-१० प्र.] (भगवन् !) गन्ध से सुगन्ध वाले जिन (भाषाद्रव्यों) को (जीव) ग्रहण करता है, क्या (वह) एकगुण सुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है, (अथवा) यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) ग्रहण करता है ?
[८७७-१० उ.] गौतम ! (वह) एकगुण सुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण सुगन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है। इसी तरह वह एकगुण दुर्गन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण दुर्गन्ध वाले (भाषाद्रव्यों को) भी ग्रहण करता है।
[११] जाइं भावतो रसमंताई गेण्हति ताइं किं एगरसाइं गेण्हति ? जाव किं पंचरसाइं गेण्हति?