Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[प्रज्ञापनासूत्र
अनुमत भाषाएँ - भगवान् द्वारा दो प्रकार की भाषा बोलने की अनुमति साधुवर्ग को दी गई है - सत्याभाषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा। इसका फलितार्थ यह हुआ कि भगवान् ने मिश्र (सत्यामृषा) भाषा और मृषा (असत्य) भाषा बोलने की अनुज्ञा नहीं दी है, क्योंकि ये दोनों भाषाएँ यथार्थ वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन नहीं करतीं, अतएव ये मोक्ष की विरोधनी हैं। पर्याप्तिका-अपर्याप्तिका भाषा और इनके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा
८६०. कतिविहा णं भंते ! भासा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा भासा पण्णत्ता। तं जहा - पज्जत्तिया य अपज्जत्तिया य। [८६० प्र.] भगवन् ! भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? [८६० उ.] गौतम ! भाषा दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार - पर्याप्तिका और अपर्याप्तिका । ८६१. पज्जत्तिया णं भंते ! भासा कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा - सच्चा य मोसा य। [८६१ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? [८६१ उ.] गौतम ! पर्याप्तिका भाषा दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार - सत्या और मृषा । ८६२. सच्चा णं भंते ! भासा पज्जत्तिया कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता । तं जहा - जणवयसच्चा १ सम्मतसच्चा २ ठवणासच्चा ३ णामसच्चा ४ रूवसच्चा ५ पडुच्चसच्चा ६ ववहारसच्चा ७ भावसच्चा ८ जोगसच्चा ९ ओवम्मसच्चा १० ।
जणवय १ सम्मत २ ठवणा ३ णामे ४ रूवे ५ पडुच्चसच्चे ६ य।
ववहार ७ भाव ८ जोगे ९ दसमे ओवम्मसच्चे १० य ॥१९४॥ [८६२ प्र.] भगवन् ! सत्या-पर्याप्तिका भाषा कितने प्रकार की कही गई है ?
[८६२ उ.] गौतम ! दस प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार - (१) जनपदसत्या, (२) सम्मतसत्या, (३) स्थापनासत्या, (४) नामसत्या, (५) रूपसत्या, (६) प्रतीत्यसत्या (७) व्यवहारसत्या, (८) भावसत्या. (९) योगसत्या और (१०) औपम्यसत्या ।
[संग्रहणीगाथार्थ -] (दस प्रकार के सत्य) - (१)जनपदसत्य, (२) सम्मतसत्य, (३) स्थापनासत्य,
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २५६, २५७