Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ग्यारहवाँ भाषापद ]
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जनकत्व तथा अध्यापकत्व भी है, फिर भी जब उसका पुत्र उसे आता देखता है तो कहता है- पिताजी आ रहे है : उसका शिष्य कहता है उपाध्याय आ रहे है: वैसे ही यहाँ भी मानुषी आदि सभी शब्द यद्यपि त्रिलिंगात्मक हैं, तथापि योनि, मृदुता, अस्थिरता, पलता आदि (स्त्रीत्व ) की प्रधानता से विवक्षा करके, उससे विशिष्ट धर्मों को प्रधान करके जब ( मानुषी आदि) धर्मो का प्रतिपादन किया जाता है, तब मानुषी आदि भाषा स्त्रीवाक् - अर्थात् - स्त्रीत्व - प्रतिपादिका भाषा कहलाती है। (४-५) सूत्र ८५२ एवं ८५३ में प्ररूपित प्रश्नों के कारण भी पूर्ववत् समझना चाहिए कि - (४) मनुष्य से लेकर चिल्ललक तक शब्द तथा इसी प्रकार के अन्य शब्द क्या पृरुषवाक् हैं - अर्थात् क्या यह सब पुल्लिंगप्रतिपादक भाषा है ? तथा (५) कांस्य से लेकर रत्न क के शब्द तथा इसी प्रकार के अन्य शब्द क्या नपुंसकवचन हैं, अर्थात् - क्या यह सब नपुंसकलिंग प्रतिपादक भाषा है ? इनके उत्तर का भी आशय पूर्ववत् ही समझना चाहिए। निष्कर्ष यह है कि यद्यपि मनुष्य आदि शब्द तथा कांस्यादि शब्द त्रिलिंगात्मक हैं, फिर भी प्रधानरूप से पुंस्त्व धर्म अथवा नपुंसकत्व धर्म की विवक्षा के कारण इन्हें क्रमशः पुल्लिंग (पुरुषवचन) तथा नपुंसकलिंग (नपुंसकवचन) कहा जाता है। (६) सूत्र ८५४
प्रश्नोत्तर का निष्कर्ष यह है कि 'पृथ्वी' यह स्त्रीवाक् (स्त्रीलिंग विशिष्ट अर्थ की प्रतिपादिका भाषा) है, ‘अप्’ शब्द पुंवाक् (पुल्लिंगविशिष्ट अर्थ की प्रतिपादिका भाषा) है तथा 'धान्यं' शब्द नपुंसकवाक् (नपुंसकलिगविशिष्ट अर्थ की प्रतिपादिका भाषा) है, यह भाषा प्रज्ञापनी अर्थात् सत्य है, मृषा नहीं है, क्योंकि यह सत्य अर्थ का प्रतिपादन करती है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि 'आऊ' (अप्= जल) शब्द प्राकृत भाषा के व्याकरणानुसार पुल्लिंग है, संस्कृत भाषा के अनुसार तो वह स्त्रीलिंग ही है । (७) सू. ८५५ में प्ररूपित प्रश्न का आशय है कि 'पृथ्वी' कुरु, पृथ्वीमानय' (पृथ्वी को बनाओ, पृथ्वी लाओ), इस प्रकार जो स्त्री (स्त्रीलिंग की) आज्ञापनी भाषा है: आपः आनय (पानी लाओ), इस प्रकार जो पुरुष ( पुल्लिंग की ) आज्ञापनी भाषा है तथा धान्यं आनय ( धान्य लाओ) इस प्रकार की जो नपुंसक (नपुंसकलिंग की) अज्ञापनी भाषा है, क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? मृषा नहीं है ? भगवान् ने इसका स्वीकृतिसूचक उत्तर दिया है, जिसका आशय यह है कि पूर्वोक्त तीनों स्थानों पर क्रमशः स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसकलिंग की ही विवक्षा होने से, अन्य धर्मों को गौण करके, उन्हीं से विशिष्ट पृथ्वी, अप् एवं धान्यरूप धर्मों का यह भाषा प्रतिपादन करती है । (८) सू. ८५६ में प्ररूपित प्रश्न का आशय यह है कि 'पृथ्वी' इस प्रकार की स्त्री प्रज्ञापनी (स्त्रीत्वस्वरूप की प्ररूपणी), 'आप' इस प्रकार की पुरुषप्रज्ञापनी (पुंस्त्वस्वरूप- प्ररूपणी) तथा 'धान्यं' इस प्रकार की नपुंसकप्रज्ञापनी (नपुंसकत्वरुप - प्ररुपणी) भाषा क्या आराधनी (मुक्तिमार्ग की अविरोधिनी) भाषा है। यह भाषा मृषा तो नहीं है ? अर्थात् - इस प्रकार कहने वाले साधक को मिथ्याभाषण का प्रसंग तो नहीं होता ? भगवान् ने इसके उत्तर में कहा कि यह भाषा आराधनी (मोक्षमार्ग के आराधन के योग्य) भाषा है, यह मृषा नहीं है: क्योंकि यह भाषा शाब्दिक व्यवहार की अपेक्षा से यथार्थ वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन करने वाली है। (९) सू. ८५७ में प्ररूपित प्रश्न समुच्चयरूप से अतिदेशात्मक है। उसका आशय यह है कि पूर्वोक्त प्रकार से अन्य भी स्त्रीलिंग प्रतिपादक को स्त्रीवचन, पुल्लिंगप्रतिपादक को पुरुषवचन तथा नपुंसकलिंग - प्रतिपादक को नपुसंकवचन
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