Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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६२ ]
[ प्रज्ञापनासूत्र
सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोक्कंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावऽण्णे तहप्पगारा सव्वा सा एगवयू ?
हंसा गोयमा ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावऽण्णे तहप्पगारा सव्वा सा एगवयू ।
[८४९ प्र.] भगवन् ! मनुष्य, महिष (भैंसा), अश्व, हाथी, सिंह, व्याघ्र, वृक (भेड़िया), द्वीपिक (दीपड़ा), ऋक्ष (रीछ भालू), तरक्ष, पाराशर (गेंडा), रासभ (गधा), सियार, विडाल (बिलाव), शुनक, (कुत्ता-श्वान), कोलशुनक (शिकारी कुत्ता), कोकन्तिकी (लोमड़ी), शशक (खरगोश), चीता (चित्रक)
और चिल्ललक (वन्य हिंस्त्र पशु), ये और इसी प्रकार के जो (जितनें) भी अन्य जीव हैं, क्या वे सब एकवचन हैं ?
[८४९ उ.] हाँ गौतम ! मनुष्य से लेकर चिल्ललक तक तथा ये और अन्य जितने भी इसी प्रकार के प्राणी हैं, वे सब एकवचन हैं। .
८५०. अह भंते ! मणुस्सा जाव चिल्ललगा जे यावऽण्णे तहप्पगागा सव्वा सा बहुवयू ? हंता गोयमा ! मणुस्सा जाव चिल्ललगा सव्वा सा बहुवयू।
[८५० प्र.] भगवन् ! मनुष्यों (बहुत-से मनुष्य) से लेकर बहुत चिल्ललक तथा ये और इसी प्रकार के जो अन्य प्राणी हैं, वे सब क्या बहुवचन हैं ?
[८५० उ.] हाँ गौतम ! मनुष्यों (बहुत से मनुष्य) से लेकर बहुत चिल्ललक तक तथा अन्य इसी प्रकार के प्राणी, ये सब बहुवचन हैं।
८५१. अह भंते ! मणुस्सी महिसी वलवा हत्थिणिया सीही वग्घी वगी दीविया अच्छी तरच्छी परस्सरी सियाली विराली सुणिया कोलसुणिया कोक्कंतिया ससिया चित्तिया चिल्ललिया जा यावऽण्णा तहप्पगारा सव्वा सा इत्थिवयू ?
हंता गोयमा ! मणुस्सी जाव चिल्ललिया जा यावऽण्णा तहप्पगारा सव्वा सा इत्थिवयू ।
[८५१ प्र.] भगवन् ! मानुषी (स्त्री), महिषी (भैंस), वडवा (घोड़ी), हस्तिनी (हथिनी), सिंही (सिंहनी), व्याघ्री, वृकी (भेड़िनी), द्वीपिनी, रींछनी, तरक्षी, पराशरा (गैंडी), रासभी (गधी), शृगाली (सियारनी), बल्ली, कुत्ती (कुतिया), शिकारी कुत्ती, कोकन्तिका (लोमड़ी), शशकी (खरगोशी), चित्रकी (चित्ती), चिल्ललिका, ये और अन्य इसी प्रकार के (स्त्रीजाति विशिष्ट) जो भी (जीव) हैं, क्या वे सब स्त्रीवचन हैं ?
[८५१ उ.] हाँ, गौतम ! मानुषी से (लेकर) यावत् चिल्ललिका, ये और अन्य इसी प्रकार के जो भी (जीव) हैं, वे सब स्त्रीवचन हैं।