Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ प्रज्ञापनासूत्र
(२) स्थिति-चरम - अचरम स्थितिपर्याय रूप चरम को स्थितिचरम कहते हैं। जो नारक जीव पृच्छा के समय जिस स्थिति (आयु) का अनुभव कर रहा है, वह स्थिति अगर उसकी अन्तिम है, फिर कभी उसे वह स्थिति प्राप्त नहीं होगी तो वह नारक स्थिति की अपेक्षा चरम कहलाता है। यदि भविष्य में फिर कभी उसे उस स्थिति का अनुभव करना पड़ेगा, तो वह स्थिति - अचरम है।
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(३) भव- चरम - अचरम - भवपर्यायरूप चरम भवचरम है। अर्थात् - पृच्छाकाल में जिस नारक आदि जीव का वह वर्तमान भव अन्तिम है, वह भवचरम है और जिसका वह भव अन्तिम नहीं है, वह भवअचरम है। बहुत-से नारक ऐसे भी हैं, जो वर्तमान नारकभव के पश्चात् पुन: नारकभव में उत्पन्न नहीं होंगे, भवचरम है, किन्तु जो नारक भविष्य में पुन: नारकभव में उत्पन्न होंगे, वे भव - अचरम हैं ।
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(४) भाषा - चरम - अचरम जो जीव भाषा की दृष्टि से चरम हैं, अर्थात् - जिन्हें यह भाषा अन्तिम रूप में मिली है, फिर कभी नहीं मिलेगी, वे भाषाचरम हैं, जिन्हें फिर भाषा प्राप्त होगी, वे भाषा - अचरम हैं। एकेन्द्रिय जीव भाषा रहित होते हैं, क्योंकि उन्हें जिह्वेन्द्रिय प्राप्त नहीं होती, इसलिए वे भाषाचरम या भाषाअचरम की कोटि में परिगणित नहीं होते ।
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(५) आन-प्राण ( श्वासोच्छ्वास ) - चरम - अचरम आनप्राणपर्यायरूप चरम आनप्राणचरम कहलाता । पृच्छा के समय जो जीव उस भव में अन्तिम श्वासोच्छ्वास ले रहा होता है, उसके बाद उस भव में फिर श्वासोच्छ्वास नहीं लेगा, वह श्वासोच्छ्वासचरम है, उससे भिन्न जो हैं, वे श्वासोच्छ्वास - अचरम हैं।
(६) आहार- चरम - अचरम आहारपर्यायरूप चरम को आहारचरम कहते हैं। सामान्यतया आहारचरम मुक्त मनुष्य होते हैं । विशेषतया उस गति या भव की दृष्टि से जो अन्तिम आहार ले रहा हो, वह उस गति या भव की अपेक्षा आहारचरम है, जो उससे भिन्न हो, वह आहारअचरम है।
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(७) भाव-चर-अचरम - औदयिक आदि पांच भावों के अर्थ में यहाँ भाव शब्द है । औदयिक आदि भावों में से जो भाव जिस जीव के लिए अन्तिम हो, फिर कभी अथवा वर्त्तमान गति में फिर कभी वह भाव नहीं प्राप्त होगा, तब उस जीव को भावचरम कहा जायेगा, इसके विपरीत भावअचरम है। 1
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( ८-११) वर्ण - गन्ध-रस-स्पर्श- चरम - अचरम जिस जीव के लिए वर्ण, गन्ध, रस या स्पर्श अन्तिम हो, फिर उसे प्राप्त न हो, वह वर्णादि चरम है, जिसे पुन: वर्णादि प्राप्त हो रहे हैं, होंगे भी, वह वर्णादिअचरम है। इन ग्यारह द्वारों के माध्यम से एकवचन और बहुवचन के रूप में नारकों से लेकर वैमानिकों तक के चरम - अचरम विषयक प्रश्नों के उत्तर एक से हैं। एकवचनात्मक नारकादि जीव कथंचित् चरम है, कथंचित्
प्रज्ञापनांसूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २४५ - २४६
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