________________ स्थानांगसूत्र 186 110 वें मूत्र में पूर्व भाद्रपद प्रादि के तारों का वर्णन है तो सूर्यप्रज्ञप्ति 6deg और समवायांग 16 1 में भी वह वर्णन मिलता है। स्थानांगसूत्र'१२ 126 वें सूत्र में तीन गुप्तियाँ एवं तीन दण्डकों का वर्णन है। समवायांग, 16 3 प्रश्नव्याकरण,१४४ उत्तराध्ययन 165 और यावश्यक 166 में भी यह वर्णन है। सूत्र'१७ 182 वें सूत्र में उपवास करनेवाले श्रमण को कितने प्रकार के धोवन पानी लेना कल्पता है, यह वर्णन समवायांग 18, प्रश्नव्याकरण 66, उत्तराध्ययन२०० और आवश्यक सूत्र२०१ में प्रकारान्तर से पाया है। स्थानांगसूत्र२०२ 214 में विविध दृष्टियों से ऋद्धि के तीन प्रकार बताये हैं। उसी प्रकार का वर्णन समवायांग 203, प्रश्नव्याकरण२०४ में भी पाया है। ___ स्थानांगसूत्र२०५ 227 वें सूत्र में अभिजित, श्रवण, अश्विनी, भरणी, मृगशिर, पुष्य, ज्येष्ठा के तीन-तीन तारे कहे हैं। वहीं वर्णन समवायांग२०६ और सूर्यप्रज्ञप्ति 207 में भी प्राप्त है। स्थानांगसूत्र२०८ 247 में चार ध्यान का और प्रत्येक ध्यान के लक्षण, पालम्बन बताये गये हैं, वैसा ही वर्णन समवायांग२०६, भगवती२१०, और औपपातिक 211 में भी है। 189. स्थानांगसूत्र-अ. 2, उ. 4, सूत्र 110 190. सूर्यप्रज्ञप्ति-प्रा. 10, प्रा. 9, सूत्र 42 191. समवायांगसूत्र-सम. 2, सूत्र 5 192. स्थानांगसूत्र, अ. 3. उ. 1, सूत्र 126 193. समवायांग, सम. 3, सूत्र 1 194. प्रश्नव्याकरणसूत्र, ५वा संवरद्वार 195. उत्तराध्ययनसूत्र, अ. 31 196. आवश्यकसूत्र, अ. 4 197. स्थानांगसूत्र, अ. 3, उ. 3, सूत्र 182 198. समवायांग, सम. 3, सूत्र 3 199. प्रश्नव्याकरण सूत्र, ५वाँ संवरद्वार 200. उत्तराध्ययन, अ. 31 201. पावश्यकसूत्र, अ. 4 202. स्थानांग, अ.३, उ.४, सूत्र 214 203. समवायांग, सम. 3, सूत्र 4 204. प्रश्नव्याकरण, श्वाँ संवरद्वार 205. स्थानांग, अ. 3, उ. 4, सूत्र 227 206. समवायांग, 3, सूत्र 7 207. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा. 10, प्रा. 9, सूत्र 42 208. स्थानांगसूत्र, अ. 4, उ. 1, सूत्र 247 209. समवायांग, सम. 4, सूत्र 2 210. भगवती, शत. 25, उ. 7, सूत्र 282 211. औपयातिक सत्र, 30 [ 45 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org