________________ स्थानांग'६५ का नवम सुत्र 'एगे बन्धे' है और दशवाँ सूत्र 'एगे मोक्खे' है। समवायांग'६६ में ये दोनों सूत्र इसी रूप में मिलते हैं / सूत्रकृतांग'६७ और प्रौपपातिक 168 में भी इसका वर्णन हुआ है। स्थानांग१६६ का तेरहवाँ सूत्र 'एगे पासवे' चौदहवाँ सुत्र “एगे संवरे" पन्द्रहवाँ सुत्र 'एगा यणा' और सोलहवाँ सूत्र “एगा निर्जरा" हैं। यही पाठ समवायांग१७° में मिलता है और सूत्रकृतांग 171 और औषपातिक 72 में भी इन विषयों का इस रूप में निरूपण हना है / स्थानांग 173 सत्र के पचपनवें सत्र में प्रार्द्रा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र का वर्णन है। वहीं वर्णन समवायांग 74 और सर्यप्रज्ञप्ति१७५ में भी है। स्थानांग१७६ के सूत्र तीन सौ अदावीस में अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप पालकयानविमान प्रादि का वर्णन है। उसकी तुलना समवायांग१७७ के उन्नीस, बीस, इकवीस, और बावीसवें सत्र से की जा सकती है, और साथ ही जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति१७5 और प्रज्ञापना 176 पद से भी। स्थानांग१८० के ९५वें सूत्र में जीव-अजीव प्रावलिका का वर्णन है। वही वर्णन समवायांग१८', प्रज्ञापना'८२, जीवाभिगम'६७, उत्तराध्ययन'' में है। स्थानांग१८५ के सूत्र 96 में बन्ध आदि का वर्णन है। वैसा ही वर्णन प्रश्नव्याकरण१८६, प्रज्ञापना 87, और उत्तराध्ययन 18 सूत्र में भी है। 165. स्थानांग अ-१ सूत्र 9, 10 166. समवायांगसूत्र 1 सम 1 सूत्र 13, 14 167. सूत्रकृतांगसूत्र थ -2 अ. 5 168. औपपातिकसूत्र-३४ 169. स्थानांगसूत्र अ-१ सूत्र 13, 14, 15, 16 170. समवायांगसूत्र सम 1 सूत्र-१५, 16, 17, 18, 171. सूत्रकृतांगसूत्र श्रुत. 2 अ. 5 172. औषपातिकसत्र-३४ 173. स्थानांगसूत्र सूत्र-५५ 174. समवायांगसूत्र 23, 24, 25 175. सर्यप्रज्ञप्ति, प्रा. 10, प्र. 9 176. स्थानांगसूत्र, सूत्र 328 177. समवायांगसूत्र, सम-१, सूत्र 19, 20, 21, 22 178. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र-वक्ष-१ सूत्र 3 179. प्रज्ञापनासूत्र-पद-२ 180. स्थानांगसूत्र, अ. 4 उ. 4 सूत्र 95 181. समवायांगसूत्र 149 182. प्रज्ञापना पद. 1 सूत्र-१ 183. जीवाभिगम प्रति. 1 सूत्र-१ 184. उत्तराध्ययन अ. 36 185. स्थानांगसूत्र अ. 2 उ. 4 सूत्र-९६ 186. प्रश्नव्याकरण 5 वाँ 187. प्रज्ञापना पद 23 188. उत्तराध्ययन सूत्र अ. 31 [ 44 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org