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हिंदी-भाव सहित (प्रस्तावना )। वृथा ही अधिक और अनुचित बकने वाले एवं अभिमानवश अपनेको ऊँचा दिखानेवाले मनुष्य तो संसारमें बहुतसे मिलेंगे, किंतु जिनके अंतःकरणमें सच्ची धर्मवासना जाग चुकी है और इसीलिये जगका निःस्वार्थ सच्चा उद्धार करनेके लिये जो उत्सुक होचुके हैं, ऐसे श्रेष्ठ मनुष्य अत्यंत दुर्लभ हैं ।
यदि ऐसे सच्चे वक्ता विरल हैं, तो उनकी पहचान क्या है ! इस प्रश्नका उत्तर, (वक्ताका लक्षण ):--
माज्ञः प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदयः प्रव्यक्तलोकस्थितिः, प्रास्ताशः प्रतिभापरः प्रशमवान् प्रागेव दृष्टोत्तरः । मायःप्रश्नसहः प्रभुः परमनोहारी परानिन्दया, ब्रूयाद्धर्मकथां गणी गुणनिधिः प्रस्पष्टमिष्टाक्षरः ॥५॥
अर्थः-जो विशेष चमत्कारिणी बुद्धिको धारण करनेवाला हो, संपूर्ण शास्त्रोंका रहस्य जाननेवाला हो, लोकमर्यादाका जाननेवाला हो, आशारहित हो, नवीन नवीन विचार सुनानेवाला हो, प्रतिभायुक्त अर्थात् कांतिमान् हो, शांत-क्रोधरहित हो, प्रश्न उठनेसे पहले ही उस प्रश्नका उत्तर जाननेवाला हो, अनेक प्रश्न सुनकर भी जिसको क्षोभ उत्पन्न न होता हो, श्रोताओंसे ऊँचा हो-प्रभावयुक्त हो, श्रोताओंके चित्तको आकर्षित करनेवाला हो, आप स्वयं अनिंद्य हो तथा दूसरोंकी निंदा न करता हो, श्रोतागणका नायक हो, अनेक उत्तम गुणोंका धारण करनेवाला हो और स्पष्ट तथा मीठे शब्द बोलता हो वही वक्ता या उपदेशक हो सकता है । बुद्धिरहित मनुष्य वक्ता नहीं हो सकता । जो अनेक शास्त्रोंका मर्म नहीं जानता वह भी यथार्थ वस्तुस्वरूप समझें विना कैसे उपदेश दे सकता है? जो लौकिक व्यवहार नहीं समझता हो वह लौकिक व्यवहारके अविरुद्ध उपदेश कैसे दे सकता है और लौकिक व्यवहारके प्रतिकूल धर्मका व्ववहार कैसे चल सकता है? जो श्रोताओंको धर्म सुनाकर उनसे कुछ