Book Title: Aatmanushasan
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 260
________________ हिंदी-भाव सहित ( ममत्व छूटनेकी भावना)। २३५ अर्थः-जैसे अमिसे जल गरम हो जाता है वैसे ही मैं शरीरके संबंधसे संतप्त हो रहा हूं। इसीलिये इस देहका संबंध जब छोडा तभी मोक्षार्थी महायोगियोंको शाश्वतिक शांति प्राप्त हुई। भावार्थ, मैं भी जब शरीरको क्षीण करूंगा तभी मुझे शांति प्रात होगी। और भी, अनादिचयसंवृद्धो महामोहो हदि स्थितः । सम्यग्योगेन यैर्वान्तस्तेषामूवं विशुध्यति ॥ २५५ ॥ अर्थः-जीवोंके हृदयमें महामोहका संचय होरहा है और वह अनादिकालसे होरहा है । जिन्होंने वास्तविक चित्तनिरोध करके इस महामोहको निकाल दिया उन्हीका उत्तरकालसंबंधी पर्याय सुधरा । जबतक महामोह नष्ट नहीं होता तबतक अंतरीय आत्मा ममत्वसे छूटता नहीं है । इसलिये ममता नष्ट करने का मूल उपाय मोहकर्मका नाश है । देखो, किसीके भीतर यदि मलप्रकोप हुआ हो तो वह रोगी वन जाता है। उसके रोग दूर करने का उपाय यह है कि वमन तथा रेचनद्वारा वह मल निकालदिया जाय । इसकेलिये उत्तम औषधोंका योग ग्रहण करना पडता है । उत्तम औषध ली तो वह मल दूर होनेसे शरीर आगेकेलिये शुद्ध हो जाता है । संसार-रोगका नाश करनेकेलिये भी ऐसी ही कोई औषध लेना चाहिये । चित्तका पसारा बढनेसे महामोह कर्म बढता है और उसीका संचय होनेसे संसारके दुःख बढते हैं । इसलिये चित्तका वास्तविक निरोध करना, यही इसकी औषध है । इस औषधसे अनादिसंचित महामोहको दूर किया कि संसाररोग दूर हो जायगा । महामोह हटनेके चिन्हः - एकैश्चर्यमिहकतामभिमतावाप्तिं शरीरच्युति, दुःखं दुष्कृतिनिष्कृतिं सुखमलं संमारसौख्योज्झनम् । सर्वत्यागमहोत्सवव्यतिकरं प्राणव्ययं पश्यतां, किं तद्यन्न सुखाय तेन सुखिनः सत्यं सदा साधवः ॥२५६॥ . अर्थ:-जिन महात्माओंका मोह गलित हो गया है उन्हें ए.

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