Book Title: Aatmanushasan
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 273
________________ आत्मानुशासन. भगवान् वृषभनाथ स्वामीके आश्रयसे होगा। इसलिये तुम संसारके जीवों, उन्हीका उपदेश सुनो और तदनुसार चलो। जिससे कि तुझे अपना अभीष्ट प्राप्त हो । अभीष्ट क्या ? कल्याण, मंगल, शुभ, आमंद-परमानंद, सुख या आत्म-सिद्धि । ॥ इति ॥ वं-दों मैं तुम पांय, नाभिके अनुपम नंदा। शी-ख देय जिन जगतजीवके काटे फंदा ॥ ध-रि जिनदक्षिा घाति घाति-करमनिके दंदा । -विसम केवलबोध पाय लिय शिवआनंदा॥ १ मङ्गलं भगवान् वीरो, मगलं गौतमो गणी। मगलं कुन्दकुन्दार्या जैनधर्मोस्तु मङ्गलम् ।।

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