________________
हिंदी-भाव सहित ( सच्चे योगियोंका स्वरूप)। २३७ नेको उत्साहित होते हैं। अब कहिये, आये हुए कर्मोंसे उन्हें संकट क्यों होने लगा ? इसीलिये विद्वान् योगियोंको कर्मों के उदयसे खेद होना संभव नहीं है । देखो,
जिस शूरको शत्रु जीतनेकी उत्कंठा है वह आप ही शत्रुपर टूटकर पडना चाहता है । यदि शत्रु ही स्वयं आकर लढना चाहें तो और भी अधिक आनंदकी बात है। उसे उस शत्रुके आक्रमणसे दुःख तथा भय कैसा ? प्रत्युत, जो विजय प्रयत्नसाध्य था उसमें अधिक सुगमता हुई समझना चाहिये । उस शत्रुके साथ लढाईमें निःसंदेह विजय ही मिलेगा। वस, इसी प्रकार योगीको उदयावलीमें आकर प्राप्त होनेवाले कोसे खेह नहीं होता। .. अरे भाई, कर्म आकर यदि दुःख दे तो कैसे दे ? ऐसे ही न ! कि वह आत्मेतर इष्ट वस्तुओंका विध्वंस करदे। परंतु जब कि वे स्वयमेव अन्य वस्तुओं का संयोग हटानेमें सुखी हैं तो इष्टसंयोगविच्छेदसे उन्हें दुःख किसलिये होगा ? देखो, वे साधु मुक्तिका प्रयत्न करते हुए शरीरका भी छूट जाना अच्छा समझते हैं:एकाकित्वप्रतिज्ञाः सकलमपि समुत्सृज्य सर्वसहत्वाद्, भ्रान्त्याचिन्त्याः सहायं तनुमिव सहसालोच्य किंचित्सलज्जाः। सज्जीभूताः स्वकार्ये तदपगमविधि बद्धपल्यङ्कबन्धा, ध्यायन्ति ध्वस्तमोहा गिरिगहनगुहागुह्यगेहे नृसिंहाः ॥२५८ ॥ . अर्थ:-भ्रमज्ञान जिनका चिंतवन भी नहीं करपाता है । अ. र्थात्, जिनमेंसे मिथ्याज्ञान सर्वथा हटगया है। ऐसे महात्मा सच्चे शूर योगी मोहका सर्वथा नाश कर चुके हैं । एकाकी रहनेकी प्रतिज्ञा स्वीकार करचुके हैं । अकेले रहकर निर्वाह करसकते हैं, इसलिये सारा परिग्र-जंजाल छोडकर परीषह जीतनेको कटिबद्ध हो रहे हैं। अपना कल्याण सिद्ध करनेमें सदा ही सावधान रहते हैं। आजतक अपने शरीरको अपना सहाई मान रक्खा था और अब भी कर्मोंके नाशार्थ