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हिंदी-भाव सहित (कषायसे हानि)। २११ किसीने उठा नहीं रक्खा है, इसलिये वे तो सबसे बडे मानने चाहिये । परंतु नहीं, उनसे भी बडा जगद्व्यापी कोई पदार्थ है। वह कौन ? आकाश । वह इतना बड़ा है कि उसके भीतर वह जगभरकी पृथ्वी तथा उस पृथ्वीके आश्रयभूत पवनोंके बेढे, ये सभी समा रहे हैं। अच्छा, इस आकाशको ही सबसे बडा मान लेना चाहिये ? नहीं, ये सब चीजें तथा संपूर्ण आकाश जिसके भीतर तो क्या, किंतु जिसके एक कोनमें समा रहा है ऐसा भी एक पदार्थ है । वह कौन ? सर्वज्ञ । सर्वज्ञके ज्ञानमें ये चीजें तो क्या किंतु और भी जो कुछ हो वह भी आसकता है। अब कहिये, क्षुद्र प्राणी यदि अपनेसे श्रेष्ठोंके साथ गर्व करै तो क्या देखकर ? जगमें एकसे एक बङी चीजें पड़ी हैं ।
कपटकी निन्दाःयशो मारीचीयं कनकमृगमायामलिनितं, हतोऽश्वत्थामोक्त्या प्रणयिलघुरासीद्यमसुतः । सकृष्णः कृष्णोऽभूत कपटबहुवेषेण नितरा,मपि च्छमालयं तद्विषमिव हि दुग्धस्य महतः ॥ २२० ॥
अर्थः-मारीचने सुवर्णके हरिणका रूप रामचंद्रको छलनेकेलिये बनाया । इसलिये उसकी निन्दा जगभर पसर गई। संग्रामके समय धर्मराजने एक वार यह घोषणा करदी कि अश्वत्थामा मारा गया। वस, इतने ही कपटके कारण धर्मसुतके प्रेमी जन उन्हें क्षुद्रं दृष्टिसे देखने लगे। कृष्णने वाल्यावस्थामें बहुतसे कपटवेष धरे थे। इतने ही परसे कृष्णका यश काला होगया। थोडासा भी विष बहुतसे दूधमें डालदेनेसे वह सारा दूध विगड जाता है । इसी प्रकार थोडासा भी कपट बडे बडोंके यशको मलिन कर देता है । अत एव,
भेयं मायामहागान्मिथ्याघनतमोमयात् । यस्मिन् लीना न लक्ष्यन्ते क्रोधादिविषमाहयः ॥ २२१॥ १ मारीच, धर्मराज तथा कृष्ण, इन तीनोकी कथाएं, पुराणोंसें देखनाः। .