Book Title: Aatmanushasan
Author(s): Bansidhar Shastri
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 239
________________ २११ आत्मानुशासन. नहीं होपाता। जो कषायोंका विजय करते हैं उन्हें समझना चाहिये कि उनका जहाज संसार-समुद्रके किनारेपर आलगा हैं। उनकी पहिचान क्या है - विषयविरतिः संगत्यागः कषायविनिग्रहः, शमयमदमास्तत्त्वाभ्यासस्तपश्चरणोद्यमः। नियमितमनोवृत्तिभक्तिर्जिनेषु दयालुता, भवति कृतिनः संसाराब्धेस्तटे निकटे सति ॥ २२४ ॥ अर्थः-विषयोंसे विराग, परिग्रहोंका त्याग, कषायोंका निग्रह, शांति होना, हिंसादि पापोंका छूटना, इंद्रिय व मनका निरोध, जीवादि तत्त्वोंका चिंतन, तपश्चरणकी तयारी, मनका नियमित होना, जिनेन्द्र देवमें भक्ति, परिणामोंमें दयालुता; ये सव बातें उसी महात्माको प्राप्त होती हैं कि जिसका संसार-समुद्रका किनारा समीप आचुका है। इससे भी आगेकी प्रगट दशा कैसी होती है ?यमनियमनितान्तः शान्तबाह्यान्तरात्मा, परिणमितसमाधिः सर्वसत्त्वानुकम्पी । विहितहितमिताशी क्लेशजालं समूलं, दहति निहतनिद्रो निश्चिताध्यात्मसारः ॥ २२५ ॥ ... अर्थः-यमनियमोंमें निश्चल होकर लगना, शरीरादि बाहिरी चीजोंसे अन्तर्यामी मनकी उपेक्षा होना, निर्विकल्प ध्यानमें मन होना, यावत् जीवोंमें करुणा उत्पन्न होना, शास्त्राज्ञानुसार व हित मित भोजन करनेकी आदत पडना और निद्रा प्रमाद इत्यादि दोषोंको जीतना; यह सब किसके हाथसे होसकता है ? उसीके हाथसे कि असली आमाका सार तत्त्व जिसको मालूम पड चुका है । और वही मनुष्य संसारके सर्व क्लेशोंका तथा क्लेशोंके दाता कर्मोंका निर्मूल नाश कर सकता १ नियम: परिमितकालो यावज्जीवं यमो ध्रियते ॥ श्रीसमन्तभद्रः॥ कुछ समयके लिये व्रत भारनेको नियम कहते हैं और यावज्जीव व्रतोंके स्वीकार करनेला नाम यम है।

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