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हिंदी-भाव सहित (मोक्षका उपाय)। २२१ रका सुख है। परंतु वह स्वाधीन नहीं होता व शाश्वत नहीं रहता । इसीलिये उस सुखमें आनंद मानना मानो सदाकेलिये सच्चे सुखसे विमुख बनना है। इसलिये तू मोक्षसुखको जैसे होसकै प्राप्त कर । देख,
मंक्षु मोक्षं सुसम्यक्त्वसत्यकारस्वसात्कृतम् । ज्ञानचारित्रसाकल्यमूल्येन स्वकरे कुरु ॥ २३४ ॥
अर्थ:-श्रेष्ठ सम्यग्दर्शनका प्राप्त होना, यही मोक्षकी प्राप्तिका वास्तविक उपाय है । इस उपायसे उस मोक्षको स्वाधीन बनाकर शीघ्र ही अपने हस्तगत कर । किसी चीजको अपने हस्तगत करनेमें उसकी कीमत देनी पड़ती है। मोक्षको अपने अधीन करनेमें परिपूर्ण ज्ञानचारित्रकी आवश्यकता है। इसलिये ज्ञान-चारित्र ही मोक्षप्राप्तिकेलिये मूल्य है । वह मूल्य पूरा अपने पास हुआ तो मोक्षको हस्तगत करलेना कोई कठिन नहीं है। भावार्थ, जबतक तू सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रको पूरा संचित करके उसके द्वारा मोक्षकी प्राप्ति नहीं कर पाया है तबतक स्वस्थ मत बैठ। विषयोंके सुखसे अपना मन संतुष्ट करके स्वस्थ कभी मत हो । देख, विषयोंमें रत होना न होना, यही अज्ञान व ज्ञान है:अशेषमद्वैतमभोग्यभोग्यं निवृत्तिवृत्त्योः परमार्थकोट्याम् । अभोग्यभोग्यात्मविकल्पबुद्धया निवृत्तिमभ्यस्यतु मोक्षकाक्षी २३५
अथे:-पूरा बहिरात्मा बनकर यदि देखा जाय तो सारा जग सुख-दुःखका कारण होनेसे भोगने योग्य दीख पडेगा। जो अनिष्ट है उसको दूर करना, यह उस अनिष्टका भोगना है। और जो इष्ट है उसको ग्रहण करना, यही उसका भोगना है । अथवा, सभी पदार्थ किसी न किसीकी अपेक्षा सफल या प्रयोजनीय होते हैं। इस न्यायसे यदि देखा जाय तो भी सव जगत् सार्थक व उपभोग्य ठहरता है । परंतु यह कबतक ? जबतक कि अन्तरङ्ग दृष्टिका लेशमात्र भी प्रकाश नहीं है। किंतु केवल बहिमुखे होकर-जिसकी सारी प्रवृत्ति होरही है। जो भात्मानंदका भोक्ता होकर बाहिरी चीजोंसे पूरा निवृत्त हो चुका