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आत्मानुशासन.
विषयोंका सेवन करना, उनसे सुख चाहना पूरी पूरी भूल है । तब ? केवल आत्माके स्वभाव जाननेकेलिये उसीका ध्यान करो - चिंतन करो तो संभव है कि कभी आत्माका पूरा ज्ञान होजानेसे पूरा निश्चल सुख प्राप्त हो जाय । जब कि अज्ञान अवस्था में भी थोडासा ज्ञान शेष रहनेके कारण जीवोंको कुछ सुख अनुभवगोचर होता दीखता है तो पूर्ण ज्ञानी बनने पर पूरा सुख क्यों न मिलेगा ? जब कि चेतना ही आनंददायक है तो जड पदार्थों में फसनेसे आनंद कैसे मिल सकता है ? क्योंकि, जड पदार्थों में फसनेसे ज्ञान नष्ट, या हीन अवस्थाको प्राप्त होता है जिससे कि आनंदकी मात्रा घट जाना संभव है । जड पदार्थों में फसने वाला जीव आत्मज्ञानसे तो वंचित होता है और इधर जड पदार्थोंसे कुछ मिकनेवाला नहीं है इसलिये दोनो तरफके काम से जाता है । उसे न इघरका सुख न उघरका सुख । यदि वही जीव सव तजकर अकेले आपेको भजने लगे तो पूर्ण तीनो जगका ज्ञान प्राप्त कर सकता है । फिर उससे वचा ही क्या रहा ? इसीलिये मानना चाहिये कि वह तीनो लोकका स्वामी बन चुका ।
जब कि यह जीव सव झगडे छोडकर आत्मज्ञानको प्राप्त करके सारे असार संसारमेंसे अपने चिदानंदको सार भूत समझने लगा और उस लोकश्रेष्ठ आनंदका अनुभव करने लगा तो इससे बडा और तीन लोकका स्वामी कोन होगा ? कोई नहीं । उस समय यहीं तीन लोकका स्वामी बन जायगा । क्योंकि, जो जिसका स्वामी होता है वह उसके सार सुखको भोगता है। जीव जब कि तीनो लोकके एकमात्र सार सुख आत्मानंदको भोगने लगा तो वह तीनो ही लोकका स्वामी हो चुका। इसीलिये यह कहा कि, -
तू ऐसी भावना कर कि मैं अकिंचन हूं- सभी जड पदार्थों से मेरा ज्ञानमय स्वरूप निराला है । ऐसी भावना करते करते जब तू अहं - अर्थात्, आत्मस्वरूपको अभिन्न अपना स्वरूप समझ जायगा तब तू