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आत्मानुशासन. भी अधिक फंदे पडजाते हैं । ठीक इसी तरह, स्त्रियोंके बाह्य रूपको सुंदर रमणीय व सरल सीधा देखकर जो मन प्रसन्न करनेकेलिये हाथ लगाते हैं वे फिर वहांसे छुटकारा नहीं पासकते हैं । ऊपरसे जैसा वह रूप उन्हें सीधासा दीखता था वैसा ही भीतरसे अधिक दंद-फंदसे भरा हुआ दीखने लगता है । उस समय उनकी हालत ' भई गति सांप-छछूदरकीसी' ऐसी हो जाती है ।
इनके भी पास जाकर फसते कोन हैं ? वे ही, जिनमें कि बुद्धि नहीं है । अति मूर्ख मनुष्य स्त्रियोंके सुन्दर अंगोंको देखकर मोहित होते हैं, उनके हृदयमें कामवासना उत्पन्न होती है। इसीलिये उनके साथ प्रेम करना चाहते हैं । परंतु वे यह नहीं समझते हैं कि इनके शरीरके भीतर प्रचंड काम वैठा हुआ है । स्पर्श किया या उनकी तरफ देखा भी कि वह अपने पंजोंसे झपटकर हमें ऐसा दवावेगा कि फिर वहांसे छूटना असंभव है । यह समझ न होनेसे विचारे भोले जीव स्नेह व उन्माद-तृष्णाके वशीभूत होकर उन स्त्रियोंको अपनाना चाहते हैं और इस इच्छासे वहां जाते हैं कि हमारी यह कामतृष्णा पूर्ण होगी। परंतु वहां जाते ही परवश पड जाते हैं, अपने कल्याणके शेष सारे काम छोड वैठते हैं; उन विषयोंमें विह्वल व अचेत हो पडते हैं । और जो यहांके भयंकर इंगितको समझते हैं वे वहां जाते ही नहीं । वहां न फसकर अपने कल्याणमें लगते हैं । और जो उसमें न फसकर अपने हित साधनेमें सावधान रहते हैं वे ही दुःखोंसे मुक्ति प्राप्त करते हैं।
पापिष्ठर्जगतीविधीतमभितः प्रज्वाल्य रागानलं, क्रुद्धैरिन्द्रियलुब्धकैर्भयपदैः संत्रासिताः सर्वतः। हन्तैते शरणैशिणो जनमृगाः स्त्रीछद्मना निर्मितं, घातस्थानमुपाश्रयन्ति मदनव्याधाधिपस्याकुलाः ॥१३०॥
अर्थः-काम, यह सारे शिकारियोंका राजा है और इंद्रिय उसके सेवक हैं । जब कि काम स्वयं शिकारियोंका राजा है तो सेवक