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हिंदी-भाव सहित (स्वयं संयम धारण करौ)। २०७ होकर आ नहीं सकते हैं। इसलिये तू यदि उन पवित्र गुणोंको अपने हृदयमें बुलाना चाहता है तो उन कषायोंको जीतनेका प्रयत्न कर । उनके जीतनेका उपाय यही है कि संयम धारण करो और परिणामोंको शांत बनाओ । प्रशम, संवेग, अनुकंपा तथा इंद्रियविजय इत्यादि अनेकों उपाय इन कषायोंके ही जीतनेकेलिये बताये जाते हैं।
___ संसारमें ऐसे जन बहुत मिलते हैं कि जो उपदेश तो करते हैं परंतु स्वयं करनेमें स्खलित होते हैं । ऐसोंकी हसी करते हुए आचार्य कहते हैं कि,
हित्वा हेतुफले किलांत्र सुधियस्तां सिद्धिमामुत्रिकी, वाञ्छन्तः स्वयमेव साधनतया शंसन्ति शान्तं मनः। तेषामाखुबिडालिकेति तदिदं घिग्धिक् कलेः प्राभवं, येनैतेपि फलद्वयमलयनाद दुरं विपर्यासिताः ॥.२१४ ॥
अर्थः-कितने ही जीव आप ज्ञानी बनकर संसारके कारणभूत कषाय व कषायोंके फलभूत विषयसेवन तथा विषयजन्य दुःखोंको छोडना चाहते हैं और परभवके सुधारनेकी इच्छा रखते हैं । इस सबकेलिये मनको शांत बनाना चाहिये ऐसा उपदेश भी करते हैं । शांत मनकी सदा प्रशंसा करते हैं । परंतु वास्तविक मोक्ष व मोक्षके साधनभूत कषायविजयादि उपायोंमें उनका मन नहीं लग पाया है इसलिये उनका वह सारा उपदेश तथा सर्व चेष्टा केवल लोगोंको फसानेकेलिये समझना चाहिये । जैसे बिल्ली चूहोंको चाहे जितना उपदेश दे परंतु वह केवल फसानेकेलिये समझना चाहिये । यह सव कलिकालकी महिमा है कि जिसने सत्य हितके ज्ञाता तथा उपदेशकोंको भी उस ज्ञान तथा उपदेशके फलसे वंचित बना रक्खा है। इस कलि. प्रभावको धिक्कार हो। विचारे वे तपस्वी या पंडित न तो इधरके ही
१ किलेत्यरुचौ कष्टे वा . २ आखुबिडालिकान्याय आखुबिडालचेष्ठावत्वद्योतकः ।।