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हिंदी-भाव सहित (विषयोंसे मन हटाना सहज है)। १११ पुंलिंग है ही । इस प्रकार जो पुरुष विवेकी है व सच्चे मार्गमें प्रवृत्ति करके मोक्ष-पुरुषार्थको साधना चाहता है वह शब्द व अर्थ दोनो तरहसे असली पुरुष है । ऐसा जो पुरुष होगा उसे दोनो प्रकारसे नपुंसक मन क्या कभी भी अपने वश कर सकता है ? नहीं।
भावार्थ, पुरुष यदि चाहे कि मैं मोक्षकी सिद्धि निसंशय करूं तो उसे मन कभी विषयोंमें फसा नहीं सकता है । हाँ, यह बात दूसरी है कि पुरुषने मोक्ष प्राप्त करनेकी तरफ तथा विषयोंके छोडनेकी तरफ उपयोग ही न लगाया हो । नहीं तो उसका स्त्रीलिङ्ग धारण करने वाली स्त्री तथा नपुंसक मन ये दोनो कुछ नहीं कर सकते हैं। .
यह सब व्याजोक्ति है । यथार्थमें अभिप्राय इतना ही है कि मन कुछ, पुरुषका स्वामी नहीं है किंतु पुरुष मनका स्वामी है । मन कोई स्वतंत्र निराली चीज नहीं है । केवल विचार करनेकी जो इच्छा व शक्ति प्राप्त होना है वही मन है । वह शक्ति व इच्छा जीवकी है,जीव ही उसे प्रगट करता है । इसलिये जिस जीनने जिस तरफ दृढ संकल्प किया हो उस जीवका मन वही या उसी तरफ है ऐसा कहना चाहिये । और वह यदि जोरदार हो तो कालान्तरमें भी दूसरी तरफ वह क्यों झुकेगा ? । वस, जिस जीवने मोक्ष प्राप्त करनेका दृढ संकल्प करलिया है उसका वही या उधर ही जब कि मन है तो वह जीव मोक्ष साधनेसे क्यों हटेगा ? और जबतक मोक्ष साधनेसे हटेगा नहीं तबतक स्त्री आदि विषयोंमें उसके मनकी प्रवृत्ति कभी नहीं आसकती है । इसलिये आगामी विषयोंमें मन झुक जानेके भयसे मोक्ष साधनेमें कमी व उत्साहघात कभी न करना चाहिये । तो क्या करना चाहिये ?
राज्यं सौजन्ययुक्तं श्रुतवदुरु तपः पूज्यमत्रापि यस्मात् , त्यक्त्वा राज्यं तपस्यनलघुरतिलघुः स्यात्तपः पोह्य राज्यम् । राज्यात्तस्मात् प्रपूज्यं तप इति मनसालोच्य धीमानुदग्रं, कुर्यादार्यः समग्रं प्रभवभयहरं सत्तपः पापभीरुः ॥ १३८ ॥