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आत्मानुशासन. उसीमें पैदा हो जाते हैं। अब घडेकी हालतमें यदि किसीको विखरी हुई धूलसमान माटीकी जरूरत लगी हो तो वह मनुष्य घडेको देखता हुआ भी कहता है कि यह फूटी माटी नहीं है । और जिसे घडेकी ही जरूरत है वह कहता है कि घडा तयार है। जिसे कि उसके मूल्यकी तरफ लक्ष्य हो वह घडे व फूटी माटी, इन दोनोको तुल्य माटीमोलके समझकर दोनोको माटी ही कहता है । उसे उसके आगे पीछेके पर्यायोंमें कुछ भेद ही नहीं जान पडता। ये तीनो ही भाव एक ही घडेके देखनेसे उत्पन्न होते हैं। इसलिये एक एक वस्तुके ही तीनो स्वभाव मानना उचित है । यदि ये तीनो स्वभाव एक ही पदार्थके न होते तो एक पदार्थके देखनेसे तीन प्रकारके विचार अथवा भेद-अभेदरूप दो प्रकारके विचार कभी उत्पन्न नहीं होते। पर ऐसे विचार एक ही पदार्थके देखनेपर भी उत्पन्न तो होते हैं। इसलिये उन विचारोंकी उत्पत्तिके कारणरूप जो स्वभाव वे एक एक पदार्थमें मानने पडते हैं । और भीः
न स्थास्नु न क्षणविनाशि न बोधमात्र, नाभावमप्रतिहतप्रतिभासरोधात् । तत्वं प्रतिक्षणभवत्तदतत्स्वरूप,माद्यन्तहीनमखिलं च तथा यथैकम् ॥१७३॥
अर्थः-तत्त्व न तो केवल नित्य ही है और न क्षणिक ही है। केवल ज्ञानमात्र भी तत्त्वका स्वरूप नहीं है और कुछ नहीं हो ऐसा भी नहीं है । तब ? प्रतिक्षण तत् अतत् स्वरूपोंको धारण करनेवाला तत्त्व मानागया है । किसी भी तत्त्वकी उत्पत्ति व नाशकी अवधि नहीं ठहर
१ घटमौलिसुवार्थी नशोत्पादस्थितिष्वयम् ।
शोकप्रमोदमाध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् ॥ ( आप्तमीमांसा ). २ अभिधानप्रत्ययवशादर्थस्वरूपनिर्धारणम् । अन्यथ कथमप्यर्थस्वरूपनिश्चयो न स्यात् ।
अर्थे यथाभिधानं दृश्यते यथा च दृष्ट्वा प्रतीतिर्भवेत्तथैव सोर्थ इति निश्चेतव्यम् ।